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"दम घुटता है मगर अभी तक ज़िन्दा हूँ / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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दम घुटता है मगर अभी तक ज़िन्दा हूँ
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भीड़ खड़ी है साथ मगर मैं तन्हा हूँ
  
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तफ़रीहन खैरियत यहाँ पूछी जाती
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कहना पड़ता है बिल्कुल मैं चंगा हूँ
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बेटे की भी मुझको सुननी डांट पड़ी
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सोच के यह खामोश रहा अब बूढ़ा हूँ
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खुद अपनी खुशियों को आग लगा देता
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अपनी तरह का एक अकेला बंदा हूँ
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अगर ज़माने से हटकर कुछ सोचूँ तो
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लोग समझ लेते इंसां बेढंगा हूँ
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कैसे मानूँ खुद को सच्चा  और खरा
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आँखों वाला होकर भी गर अंधा हूँ
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ख़ूँ  होते देखा , वह भी ख़ामोशी से
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कितना कायर हूँ , मैं कितना ठंडा हूँ
 
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15:14, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

दम घुटता है मगर अभी तक ज़िन्दा हूँ
भीड़ खड़ी है साथ मगर मैं तन्हा हूँ

तफ़रीहन खैरियत यहाँ पूछी जाती
कहना पड़ता है बिल्कुल मैं चंगा हूँ

बेटे की भी मुझको सुननी डांट पड़ी
सोच के यह खामोश रहा अब बूढ़ा हूँ

खुद अपनी खुशियों को आग लगा देता
अपनी तरह का एक अकेला बंदा हूँ

अगर ज़माने से हटकर कुछ सोचूँ तो
लोग समझ लेते इंसां बेढंगा हूँ

कैसे मानूँ खुद को सच्चा और खरा
आँखों वाला होकर भी गर अंधा हूँ

ख़ूँ होते देखा , वह भी ख़ामोशी से
कितना कायर हूँ , मैं कितना ठंडा हूँ