अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर अहमद सिकंदर |संग्रह= }} <Poem> उसका चेहरा गोल आ...) |
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12:22, 11 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
उसका चेहरा गोल
आँखें सीपियाँ
नावनुमा भौंहें
होंठ लिपस्टिक बिन लाल
नाक
दूर से देखी पहाड़ी का उभरा कोना
यह कविता में--
नखशिख वर्णन नहीं
उसके गाल जिसमें तिल भी एक
जिसे दरबान बताते शायर
आज जब वह सुबह-सुबह आई आफ़िस
उस पर निशान उंगलियों के
मर्दाना।