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18:56, 26 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
छुपे हुए हैं
मेरे आसपास के चेहरे
उद्धरण चिन्हों के भीतर छिपे वाक्यांशों की तरह।
कुछ चेहरे निर्लज्जता को
तो कुछ अपनी हिंसा को छुपाए हुए हैं,
कुछ चेहरे ईर्ष्या को,
और कुछ अहंकार को छिपाए हुए हैं।
कुछ अपने दर्द को छुपाए हुए हैं
चेहरे की मुस्कान के भीतर,
तो कुछ चेहरे लगभग
अपनी संपूर्णता को ही छुपाए हुए हैं।
किसी न किसी मुखौटे के भीतर छुपे हुए हैं
हर चेहरा,
लेकिन समझ में आ ही जाते हैं वे बाहर से ही,
जैसे समझ में आते हैं
उद्धरण चिन्हों के भीतर छिपे वाक्यांश।
मेरे मस्तिष्क में
उठता रहता है एक सवाल -
क्या ये चेहरे किसी दिन
स्वयं ही मुखौटे से बाहर आएंगे, या
इसी तरह हमेशा
किसी आवरण के भीतर ही छुपे रहना चाहेंगे?
०००
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