भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिमालय प्रयाण / सुभाष काक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सुभाष काक
 
|रचनाकार=सुभाष काक
|संग्रह=
+
|संग्रह=मिट्टी का अनुराग / सुभाष काक
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
''(१९७७, "लन्दन पुल" नामक पुस्तक से)''
 
''(१९७७, "लन्दन पुल" नामक पुस्तक से)''
 
+
<poem>
 
+
 
याद हैं वह अंगारे
 
याद हैं वह अंगारे
 
 
आग बुझने से बचती हुई
 
आग बुझने से बचती हुई
 
 
वात उछलती हुई जैसे उपेक्षित भूत
 
वात उछलती हुई जैसे उपेक्षित भूत
 
 
तम्बू के हाथी कान थपथपाते हुए
 
तम्बू के हाथी कान थपथपाते हुए
 
 
भूले मानचित्र
 
भूले मानचित्र
 
 
जल का सरल नाद
 
जल का सरल नाद
 
 
तुम और मैं
 
तुम और मैं
 
 
हमारी घनिष्ठता?   
 
हमारी घनिष्ठता?   
 
  
 
क्या आवारा बेचारा चले
 
क्या आवारा बेचारा चले
 
 
चीड पेडों के बीच से
 
चीड पेडों के बीच से
 
 
हमारे पुराने भाई मूर्तिमान
 
हमारे पुराने भाई मूर्तिमान
 
 
बहुत प्रतीक्षा की इन नें
 
बहुत प्रतीक्षा की इन नें
 
 
उनकी याद सो रही है
 
उनकी याद सो रही है
 
 
जब वह जागेंगे
 
जब वह जागेंगे
 
 
हम सो रहे होंगे,
 
हम सो रहे होंगे,
 
 
याद करो।  
 
याद करो।  
 
 
  
 
सुबह जागी है आलसी
 
सुबह जागी है आलसी
 
 
अंगों में सुलगती आग
 
अंगों में सुलगती आग
 
 
चिडियों का आलाप
 
चिडियों का आलाप
 
 
घास ओस से नील हुई
 
घास ओस से नील हुई
 
 
पलकें फडफडाईं और मुस्कान
 
पलकें फडफडाईं और मुस्कान
 
 
ठंडी हवा बीच उडती आई
 
ठंडी हवा बीच उडती आई
 
 
चलो टीन गर्माएं
 
चलो टीन गर्माएं
 
 
और फिर बाल संवारें।  
 
और फिर बाल संवारें।  
 
  
 
क्या पर्वत बात करता है?
 
क्या पर्वत बात करता है?
 
 
घुमाऊ पथ पर
 
घुमाऊ पथ पर
 
 
खुले स्थान पर
 
खुले स्थान पर
 
 
पृथिवी की सूजन दीखती है
 
पृथिवी की सूजन दीखती है
 
 
टूटी शिला के दान्त
 
टूटी शिला के दान्त
 
 
यहां और वहां
 
यहां और वहां
 
 
और निचली ढाल की घास और चरीले से दूर
 
और निचली ढाल की घास और चरीले से दूर
 
 
पर्वत का ध्यानमग्न मुखमण्डल
 
पर्वत का ध्यानमग्न मुखमण्डल
 
 
आंखें बन्द
 
आंखें बन्द
 
 
उदात्त मस्तक, सीधी नाक
 
उदात्त मस्तक, सीधी नाक
 
 
और वर्षा के बीच सुन पडता है
 
और वर्षा के बीच सुन पडता है
 
 
इसके वक्ष का धीमा शब्द।  
 
इसके वक्ष का धीमा शब्द।  
 
 
  
 
क्या तुमने शरीर दिखाया है
 
क्या तुमने शरीर दिखाया है
 
 
पर्वत नदी को
 
पर्वत नदी को
 
 
इसके फेन को चूमा  
 
इसके फेन को चूमा  
 
 
इससे पीठ को रगडा  
 
इससे पीठ को रगडा  
 
 
और मित्र के साथ मुक्त पाया  
 
और मित्र के साथ मुक्त पाया  
 
 
इस विशाल स्नानशाला में?
 
इस विशाल स्नानशाला में?
 
 
कितनी रुक-रुक के  
 
कितनी रुक-रुक के  
 
 
गर्मी वापस आए
 
गर्मी वापस आए
 
 
और जब यह फैले
 
और जब यह फैले
 
 
और हम फिर केवल नाम हैं,
 
और हम फिर केवल नाम हैं,
 
 
समय लौट आया  
 
समय लौट आया  
 
 
पर्वत की पट्टी को चढने का।
 
पर्वत की पट्टी को चढने का।
 
 
मेघ के उतरने के बाद
 
मेघ के उतरने के बाद
 
 
वर्षा का कडक से गिरना
 
वर्षा का कडक से गिरना
 
 
टट्टू काम्प रहे
 
टट्टू काम्प रहे
 
 
उनकी उदास विशाल आंखें अन्दर देख रहीं
 
उनकी उदास विशाल आंखें अन्दर देख रहीं
 
 
और एक भूरा चूहा रास्ता सूंघ रहा  
 
और एक भूरा चूहा रास्ता सूंघ रहा  
 
 
अपने जल-भरे बिल की ओर
 
अपने जल-भरे बिल की ओर
 
 
क्या यह बन्धु पायेगा
 
क्या यह बन्धु पायेगा
 
 
या इसे उन्हें ढूंढने  
 
या इसे उन्हें ढूंढने  
 
 
नदी तट जाना होगा?  
 
नदी तट जाना होगा?  
 
 
  
 
ऋतु में जादू हैः  
 
ऋतु में जादू हैः  
 
 
जडें पकडे खींच रहीं मिट्टी
 
जडें पकडे खींच रहीं मिट्टी
 
 
जुड गईं चीडशंकु, अविलीद और बिच्छुओं के साथ
 
जुड गईं चीडशंकु, अविलीद और बिच्छुओं के साथ
 
 
ढाल पर फिसलती हुईं।
 
ढाल पर फिसलती हुईं।
 
 
क्यों जल जोडता है और गिराता है
 
क्यों जल जोडता है और गिराता है
 
 
शक्ति देता है आत्महत्या के पथ पर,
 
शक्ति देता है आत्महत्या के पथ पर,
 
 
क्यों वात सुखाती है और जमाती,
 
क्यों वात सुखाती है और जमाती,
 
 
सूर्य गरमाता है और जलाता,
 
सूर्य गरमाता है और जलाता,
 
 
पृथिवी सहारती है और दबाती,
 
पृथिवी सहारती है और दबाती,
 
 
क्यों तत्त्वसंकर बढता जाता है?
 
क्यों तत्त्वसंकर बढता जाता है?
 
 
तथापि नये रूप आते हुए चिल्ला रहे
 
तथापि नये रूप आते हुए चिल्ला रहे
 
 
इस पंकिल रक्ती वसन्त में --
 
इस पंकिल रक्ती वसन्त में --
 
 
उनके शोकगीत कौन गायेगा
 
उनके शोकगीत कौन गायेगा
 
 
उनके घर हिमक्षेत्र में खोदेगा
 
उनके घर हिमक्षेत्र में खोदेगा
 
 
जंगल के मैदान में आग बनाएगा?  
 
जंगल के मैदान में आग बनाएगा?  
 
  
 
पहाडी पर प्रकाश बिन्दु तारा नहीं
 
पहाडी पर प्रकाश बिन्दु तारा नहीं
 
 
चरवाहा और पत्नी बात कर रहे है
 
चरवाहा और पत्नी बात कर रहे है
 
 
यादें बांटते हुए
 
यादें बांटते हुए
 
 
दोनों सौ दिन की गन्ध ओढे हुए हैं
 
दोनों सौ दिन की गन्ध ओढे हुए हैं
 
 
माखन, स्वेद, मूत्र, अन्य रस
 
माखन, स्वेद, मूत्र, अन्य रस
 
 
धरती का आर्द्र
 
धरती का आर्द्र
 
 
कढी, ओषधी और धुआं
 
कढी, ओषधी और धुआं
 
 
क्यों वह मिटा लें, जो था?
 
क्यों वह मिटा लें, जो था?
 
 
और शिविर मृदु श्वास ले रहा
 
और शिविर मृदु श्वास ले रहा
 
 
क्या तुम अन्धेरे का रिरियाना सुन रहे हो
 
क्या तुम अन्धेरे का रिरियाना सुन रहे हो
 
+
और बालों का त्वचा में अंकुरण?   
और बालों का त्वचा में अंकुरण?  
+
   
+
 
+
  
 
जैसे रात्रि मीठे से अपनी चादर बना रही
 
जैसे रात्रि मीठे से अपनी चादर बना रही
 
 
न ऋक्ष और नाहीं भयावक शब्द
 
न ऋक्ष और नाहीं भयावक शब्द
 
 
शरीर शान्त धरती पर लेटा हुआ,
 
शरीर शान्त धरती पर लेटा हुआ,
 
 
क्यों मन तब आग्रही मांगता है नई यात्रा
 
क्यों मन तब आग्रही मांगता है नई यात्रा
 
 
उन पथ पर जहां हम पहले चले थे?
 
उन पथ पर जहां हम पहले चले थे?
 
 
आग और वात
 
आग और वात
 
 
आप और मिट्टी
 
आप और मिट्टी
 
 
बहुत हैं हिमालय पर
 
बहुत हैं हिमालय पर
 
 
परन्तु मन दौडता है प्राचीन छायाओं साथ,
 
परन्तु मन दौडता है प्राचीन छायाओं साथ,
 
 
विद्यालय और पिता
 
विद्यालय और पिता
 
 
मित्र और माता
 
मित्र और माता
 
 
गाडी और वस्त्र,
 
गाडी और वस्त्र,
 
 
और पहुचता है पर्वतीय आश्रम।  
 
और पहुचता है पर्वतीय आश्रम।  
 
  
 
यह सचमुच व्यर्थ है,
 
यह सचमुच व्यर्थ है,
 
 
हम आप हैं
 
हम आप हैं
 
 
हम आप है।
 
हम आप है।
 +
</poem>

11:15, 14 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण

(१९७७, "लन्दन पुल" नामक पुस्तक से)

याद हैं वह अंगारे
आग बुझने से बचती हुई
वात उछलती हुई जैसे उपेक्षित भूत
तम्बू के हाथी कान थपथपाते हुए
भूले मानचित्र
जल का सरल नाद
तुम और मैं
हमारी घनिष्ठता?

क्या आवारा बेचारा चले
चीड पेडों के बीच से
हमारे पुराने भाई मूर्तिमान
बहुत प्रतीक्षा की इन नें
उनकी याद सो रही है
जब वह जागेंगे
हम सो रहे होंगे,
याद करो।

सुबह जागी है आलसी
अंगों में सुलगती आग
चिडियों का आलाप
घास ओस से नील हुई
पलकें फडफडाईं और मुस्कान
ठंडी हवा बीच उडती आई
चलो टीन गर्माएं
और फिर बाल संवारें।

क्या पर्वत बात करता है?
घुमाऊ पथ पर
खुले स्थान पर
पृथिवी की सूजन दीखती है
टूटी शिला के दान्त
यहां और वहां
और निचली ढाल की घास और चरीले से दूर
पर्वत का ध्यानमग्न मुखमण्डल
आंखें बन्द
उदात्त मस्तक, सीधी नाक
और वर्षा के बीच सुन पडता है
इसके वक्ष का धीमा शब्द।

क्या तुमने शरीर दिखाया है
पर्वत नदी को
इसके फेन को चूमा
इससे पीठ को रगडा
और मित्र के साथ मुक्त पाया
इस विशाल स्नानशाला में?
कितनी रुक-रुक के
गर्मी वापस आए
और जब यह फैले
और हम फिर केवल नाम हैं,
समय लौट आया
पर्वत की पट्टी को चढने का।
मेघ के उतरने के बाद
वर्षा का कडक से गिरना
टट्टू काम्प रहे
उनकी उदास विशाल आंखें अन्दर देख रहीं
और एक भूरा चूहा रास्ता सूंघ रहा
अपने जल-भरे बिल की ओर
क्या यह बन्धु पायेगा
या इसे उन्हें ढूंढने
नदी तट जाना होगा?

ऋतु में जादू हैः
जडें पकडे खींच रहीं मिट्टी
जुड गईं चीडशंकु, अविलीद और बिच्छुओं के साथ
ढाल पर फिसलती हुईं।
क्यों जल जोडता है और गिराता है
शक्ति देता है आत्महत्या के पथ पर,
क्यों वात सुखाती है और जमाती,
सूर्य गरमाता है और जलाता,
पृथिवी सहारती है और दबाती,
क्यों तत्त्वसंकर बढता जाता है?
तथापि नये रूप आते हुए चिल्ला रहे
इस पंकिल रक्ती वसन्त में --
उनके शोकगीत कौन गायेगा
उनके घर हिमक्षेत्र में खोदेगा
जंगल के मैदान में आग बनाएगा?

पहाडी पर प्रकाश बिन्दु तारा नहीं
चरवाहा और पत्नी बात कर रहे है
यादें बांटते हुए
दोनों सौ दिन की गन्ध ओढे हुए हैं
माखन, स्वेद, मूत्र, अन्य रस
धरती का आर्द्र
कढी, ओषधी और धुआं
क्यों वह मिटा लें, जो था?
और शिविर मृदु श्वास ले रहा
क्या तुम अन्धेरे का रिरियाना सुन रहे हो
और बालों का त्वचा में अंकुरण?

जैसे रात्रि मीठे से अपनी चादर बना रही
न ऋक्ष और नाहीं भयावक शब्द
शरीर शान्त धरती पर लेटा हुआ,
क्यों मन तब आग्रही मांगता है नई यात्रा
उन पथ पर जहां हम पहले चले थे?
आग और वात
आप और मिट्टी
बहुत हैं हिमालय पर
परन्तु मन दौडता है प्राचीन छायाओं साथ,
विद्यालय और पिता
मित्र और माता
गाडी और वस्त्र,
और पहुचता है पर्वतीय आश्रम।

यह सचमुच व्यर्थ है,
हम आप हैं
हम आप है।