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"मेरा माज़ी / मीना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मेरी तन्हाई का ये अंधा शिगाफ़ | |
− | मेरा माज़ी | + | ये के सांसों की तरह मेरे साथ चलता रहा |
− | मेरी तन्हाई का ये अंधा शिगाफ़ | + | जो मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया |
− | ये के सांसों की तरह मेरे साथ चलता रहा | + | जिसको आते हुए जाते हुए बेशुमार लम्हे |
− | जो मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया | + | अपनी संगलाख़ उंगलियों से गहरा करते रहे, करते गये |
− | जिसको आते हुए जाते हुए बेशुमार लम्हे | + | किसी की ओक पा लेने को लहू बहता रहा |
− | अपनी संगलाख़ उंगलियों से गहरा करते रहे, करते गये | + | किसी को हम-नफ़स कहने की जुस्तुजू में रहा |
− | किसी की ओक पा लेने को लहू बहता रहा | + | कोई तो हो जो बेसाख़्ता इसको पहचाने |
− | किसी को हम-नफ़स कहने की जुस्तुजू में रहा | + | तड़प के पलटे, अचानक इसे पुकार उठे |
− | कोई तो हो जो बेसाख़्ता इसको पहचाने | + | मेरे हम-शाख़ |
− | तड़प के पलटे, अचानक इसे पुकार उठे | + | मेरे हम-शाख़ मेरी उदासियों के हिस्सेदार |
− | मेरे हम-शाख़ | + | मेरे अधूरेपन के दोस्त |
− | मेरे हम-शाख़ मेरी उदासियों के हिस्सेदार | + | तमाम ज़ख्म जो तेरे हैं |
− | मेरे अधूरेपन के दोस्त | + | मेरे दर्द तमाम |
− | तमाम ज़ख्म जो तेरे हैं | + | तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से |
− | मेरे दर्द तमाम | + | तू एक मस्जिद-ए-वीरां है, मैं तेरी अज़ान |
− | तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से | + | अज़ान जो अपनी ही वीरानगी से टकरा कर |
− | तू एक मस्जिद-ए-वीरां है, मैं तेरी अज़ान | + | थकी छुपी हुई बेवा ज़मीं के दामन पर |
− | अज़ान जो अपनी ही वीरानगी से टकरा कर | + | पढ़े नमाज़ ख़ुदा जाने किसको सिजदा करे |
− | थकी छुपी हुई बेवा ज़मीं के दामन पर | + | |
− | पढ़े नमाज़ ख़ुदा जाने किसको सिजदा करे | + |
12:05, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
मेरा माज़ी
मेरी तन्हाई का ये अंधा शिगाफ़
ये के सांसों की तरह मेरे साथ चलता रहा
जो मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया
जिसको आते हुए जाते हुए बेशुमार लम्हे
अपनी संगलाख़ उंगलियों से गहरा करते रहे, करते गये
किसी की ओक पा लेने को लहू बहता रहा
किसी को हम-नफ़स कहने की जुस्तुजू में रहा
कोई तो हो जो बेसाख़्ता इसको पहचाने
तड़प के पलटे, अचानक इसे पुकार उठे
मेरे हम-शाख़
मेरे हम-शाख़ मेरी उदासियों के हिस्सेदार
मेरे अधूरेपन के दोस्त
तमाम ज़ख्म जो तेरे हैं
मेरे दर्द तमाम
तेरी कराह का रिश्ता है मेरी आहों से
तू एक मस्जिद-ए-वीरां है, मैं तेरी अज़ान
अज़ान जो अपनी ही वीरानगी से टकरा कर
थकी छुपी हुई बेवा ज़मीं के दामन पर
पढ़े नमाज़ ख़ुदा जाने किसको सिजदा करे