"सतपुड़ा के घने जंगल / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र | |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र | ||
}} | }} | ||
− | <poem> | + | {{KKCatNavgeet}} |
− | + | {{KKPrasiddhRachna}} | |
− | + | <poem> | |
− | + | सतपुड़ा के घने जंगल। | |
+ | नींद मे डूबे हुए से | ||
+ | ऊँघते अनमने जंगल। | ||
झाड ऊँचे और नीचे, | झाड ऊँचे और नीचे, | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 19: | ||
ऊँघते अनमने जंगल। | ऊँघते अनमने जंगल। | ||
− | + | सड़े पत्ते, गले पत्ते, | |
− | + | हरे पत्ते, जले पत्ते, | |
− | + | वन्य पथ को ढँक रहे-से | |
− | + | पंक-दल मे पले पत्ते। | |
− | + | चलो इन पर चल सको तो, | |
− | + | दलो इनको दल सको तो, | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | अटपटी-उलझी | + | ये घिनौने, घने जंगल |
− | डालियों को खींच | + | नींद में डूबे हुए से |
+ | ऊँघते अनमने जंगल। | ||
+ | |||
+ | अटपटी-उलझी लताएँ, | ||
+ | डालियों को खींच खाएँ, | ||
पैर को पकड़ें अचानक, | पैर को पकड़ें अचानक, | ||
− | प्राण को कस लें | + | प्राण को कस लें कपाएँ। |
− | + | साँप सी काली लताएँ | |
− | बला की पाली | + | बला की पाली लताएँ |
+ | |||
लताओं के बने जंगल | लताओं के बने जंगल | ||
नींद मे डूबे हुए से | नींद मे डूबे हुए से | ||
ऊँघते अनमने जंगल। | ऊँघते अनमने जंगल। | ||
− | + | मकड़ियों के जाल मुँह पर, | |
− | + | और सर के बाल मुँह पर | |
− | + | मच्छरों के दंश वाले, | |
− | + | दाग काले-लाल मुँह पर, | |
− | + | वात-झन्झा वहन करते, | |
− | + | चलो इतना सहन करते, | |
− | + | ||
− | + | कष्ट से ये सने जंगल, | |
− | + | नींद मे डूबे हुए से | |
+ | ऊँघते अनमने जंगल। | ||
अजगरों से भरे जंगल। | अजगरों से भरे जंगल। | ||
पंक्ति 53: | पंक्ति 58: | ||
शेर वाले बाघ वाले, | शेर वाले बाघ वाले, | ||
गरज और दहाड़ वाले, | गरज और दहाड़ वाले, | ||
+ | |||
कम्प से कनकने जंगल, | कम्प से कनकने जंगल, | ||
नींद मे डूबे हुए से | नींद मे डूबे हुए से | ||
ऊँघते अनमने जंगल। | ऊँघते अनमने जंगल। | ||
− | + | इन वनों के खूब भीतर, | |
− | + | चार मुर्गे, चार तीतर | |
− | + | पाल कर निश्चिन्त बैठे, | |
− | + | विजनवन के बीच बैठे, | |
− | + | झोंपडी पर फूस डाले | |
− | + | गोंड तगड़े और काले। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | जब कि होली पास आती, | |
− | + | सरसराती घास गाती, | |
− | + | और महुए से लपकती, | |
+ | मत्त करती बास आती, | ||
+ | गूँज उठते ढोल इनके, | ||
+ | गीत इनके, बोल इनके | ||
+ | |||
+ | सतपुड़ा के घने जंगल | ||
+ | नींद मे डूबे हुए से | ||
+ | उँघते अनमने जंगल। | ||
जागते अँगड़ाइयों में, | जागते अँगड़ाइयों में, | ||
पंक्ति 82: | पंक्ति 89: | ||
मत्त मुर्गे और तीतर, | मत्त मुर्गे और तीतर, | ||
इन वनों के खूब भीतर। | इन वनों के खूब भीतर। | ||
− | क्षितिज तक फ़ैला हुआ सा, | + | |
− | मृत्यु तक मैला हुआ सा, | + | क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा, |
+ | मृत्यु तक मैला हुआ-सा, | ||
क्षुब्ध, काली लहर वाला | क्षुब्ध, काली लहर वाला | ||
मथित, उत्थित जहर वाला, | मथित, उत्थित जहर वाला, | ||
पंक्ति 90: | पंक्ति 98: | ||
एक सागर जानते हो, | एक सागर जानते हो, | ||
उसे कैसा मानते हो? | उसे कैसा मानते हो? | ||
+ | |||
ठीक वैसे घने जंगल, | ठीक वैसे घने जंगल, | ||
नींद मे डूबे हुए से | नींद मे डूबे हुए से | ||
− | ऊँघते अनमने | + | ऊँघते अनमने जंगल। |
+ | |||
+ | धँसो इनमें डर नहीं है, | ||
+ | मौत का यह घर नहीं है, | ||
+ | उतर कर बहते अनेकों, | ||
+ | कल-कथा कहते अनेकों, | ||
+ | नदी, निर्झर और नाले, | ||
+ | इन वनों ने गोद पाले। | ||
+ | |||
+ | लाख पंछी सौ हिरन-दल, | ||
+ | चाँद के कितने किरण दल, | ||
+ | झूमते बन-फूल, फलियाँ, | ||
+ | खिल रहीं अज्ञात कलियाँ, | ||
+ | हरित दूर्वा, रक्त किसलय, | ||
+ | पूत, पावन, पूर्ण रसमय | ||
− | + | सतपुड़ा के घने जंगल, | |
− | + | लताओं के बने जंगल। | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + |
18:25, 10 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।
सड़े पत्ते, गले पत्ते,
हरे पत्ते, जले पत्ते,
वन्य पथ को ढँक रहे-से
पंक-दल मे पले पत्ते।
चलो इन पर चल सको तो,
दलो इनको दल सको तो,
ये घिनौने, घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
अटपटी-उलझी लताएँ,
डालियों को खींच खाएँ,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें कपाएँ।
साँप सी काली लताएँ
बला की पाली लताएँ
लताओं के बने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
मकड़ियों के जाल मुँह पर,
और सर के बाल मुँह पर
मच्छरों के दंश वाले,
दाग काले-लाल मुँह पर,
वात-झन्झा वहन करते,
चलो इतना सहन करते,
कष्ट से ये सने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
अजगरों से भरे जंगल।
अगम, गति से परे जंगल
सात-सात पहाड़ वाले,
बड़े छोटे झाड़ वाले,
शेर वाले बाघ वाले,
गरज और दहाड़ वाले,
कम्प से कनकने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
इन वनों के खूब भीतर,
चार मुर्गे, चार तीतर
पाल कर निश्चिन्त बैठे,
विजनवन के बीच बैठे,
झोंपडी पर फूस डाले
गोंड तगड़े और काले।
जब कि होली पास आती,
सरसराती घास गाती,
और महुए से लपकती,
मत्त करती बास आती,
गूँज उठते ढोल इनके,
गीत इनके, बोल इनके
सतपुड़ा के घने जंगल
नींद मे डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।
जागते अँगड़ाइयों में,
खोह-खड्डों खाइयों में,
घास पागल, कास पागल,
शाल और पलाश पागल,
लता पागल, वात पागल,
डाल पागल, पात पागल
मत्त मुर्गे और तीतर,
इन वनों के खूब भीतर।
क्षितिज तक फ़ैला हुआ-सा,
मृत्यु तक मैला हुआ-सा,
क्षुब्ध, काली लहर वाला
मथित, उत्थित जहर वाला,
मेरु वाला, शेष वाला
शम्भु और सुरेश वाला
एक सागर जानते हो,
उसे कैसा मानते हो?
ठीक वैसे घने जंगल,
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
धँसो इनमें डर नहीं है,
मौत का यह घर नहीं है,
उतर कर बहते अनेकों,
कल-कथा कहते अनेकों,
नदी, निर्झर और नाले,
इन वनों ने गोद पाले।
लाख पंछी सौ हिरन-दल,
चाँद के कितने किरण दल,
झूमते बन-फूल, फलियाँ,
खिल रहीं अज्ञात कलियाँ,
हरित दूर्वा, रक्त किसलय,
पूत, पावन, पूर्ण रसमय
सतपुड़ा के घने जंगल,
लताओं के बने जंगल।