भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
 
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKPrasiddhRachna}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है  
 
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है  
 
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है  
 
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है  
पंक्ति 17: पंक्ति 19:
 
वह जन मारे नहीं मरेगा
 
वह जन मारे नहीं मरेगा
 
नहीं मरेगा
 
नहीं मरेगा
 +
</poem>

03:45, 4 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
 
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा