भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(11 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 215 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div>
+
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
+
<!----BOX CONTENT STARTS------>
+
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक:''' बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]
+
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
+
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
+
पूछेगा सारा गाँव,  बंधु!
+
  
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
वह कभी नहाती थी धँसकर,
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
+
काँपते थे दोनों पाँव बंधु!
+
  
वह हँसी बहुत-कुछ कहती थी,
+
<div style="text-align: center;">
फिर भी अपने में रहती थी,
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
सबकी सुनती थी, सहती थी,
+
</div>
देती थी सबको दाँव, बंधु!
+
  
</pre>
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
+
अपरिचित पास आओ
 +
 
 +
आँखों में सशंक जिज्ञासा
 +
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
 +
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
 +
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
 +
 
 +
सबमें अपनेपन की माया
 +
अपने पन में जीवन आया
 +
</div>
 +
</div></div>

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया