भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डर लगता है / शक्ति चटोपाध्‍याय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: एक आदमी अचानक ताली बजाकर शब्‍द करता है क्‍योंकि पत्‍थर को देख उस...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
एक आदमी  
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=शक्ति चटोपाध्‍याय
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
<Poem>
 +
एक आदमी
 
अचानक ताली बजाकर शब्‍द करता है
 
अचानक ताली बजाकर शब्‍द करता है
 
क्‍योंकि पत्‍थर को देख उसे डर लगता है
 
क्‍योंकि पत्‍थर को देख उसे डर लगता है
 
उसे डर लगता है
 
उसे डर लगता है
कि कहीं स्‍वयं वह पत्‍थर तो नहीं !  
+
कि कहीं स्‍वयं वह पत्‍थर तो नहीं !
  
 
आदमी और पत्‍थर
 
आदमी और पत्‍थर
पंक्ति 20: पंक्ति 26:
 
आदमी को डर लगता है
 
आदमी को डर लगता है
 
आदमी से !
 
आदमी से !
 +
</poem>

15:17, 11 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

एक आदमी
अचानक ताली बजाकर शब्‍द करता है
क्‍योंकि पत्‍थर को देख उसे डर लगता है
उसे डर लगता है
कि कहीं स्‍वयं वह पत्‍थर तो नहीं !

आदमी और पत्‍थर
यदि भर लेंगे एक दूसरे को बांहों में
तो उससे पैदा होगी आग !
इसीलिए डरता है आदमी
आदमी को देखकर

वह घने जंगलों में जाता है
पर नहीं डरता
वहां वह देखता है बाघ के पंजों के निशान
पर वे उसे लगते हैं
लक्ष्‍मी के पैरों की छाप की तरह शुभ
पर आदमी को डर लगता है
धूप से,अगरबत्‍ती की गंध से
आदमी को डर लगता है
आदमी से !