भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
 
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
+
मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
 
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
 
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
  
यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
+
ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
 
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
 
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
  
 
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
 
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
+
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
  
 
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
 
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
  
 
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
 
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
+
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा
  
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
+
हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा</poem>
+
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा
 +
</poem>

12:15, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा