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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''कोई हँस रहा है कोई रो रहा है<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अकबर इलाहाबादी]]
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कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
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कोई पा रहा है कोई खो रहा है
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कोई ताक में है किसी को है ग़फ़्लत
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कोई जागता है कोई सो रहा है
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
कहीँ नाउमीदी ने बिजली गिराई
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कोई बीज उम्मीद के बो रहा है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
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यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
शब्दार्थ :
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
ग़फ़्लत=भूल 
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सबमें अपनेपन की माया
 
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अपने पन में जीवन आया
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया