भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 205 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div>
+
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
+
<!----BOX CONTENT STARTS------>
+
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पुस्तकें <br>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विश्वनाथप्रसाद तिवारी]]
+
<pre style="overflow:auto;height:21em;">
+
नही, इस कमरे में नहीं
+
उधर
+
उस सीढ़ी के नीचे
+
उस गैरेज के कोने में ले जाओ
+
पुस्तकें
+
वहाँ, जहाँ नहीं अट सकती फ्रिज
+
जहाँ नहीं लग सकता आदमकद शीशा
+
  
बोरी में बांध कर
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
चट्टी से ढँक कर
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
कुछ तख्ते के नीचे
+
कुछ फूटे गमले के ऊपर
+
रख दो पुस्तकें
+
  
ले जाओ इन्हें तक्षशिला- विक्रमशिला
+
<div style="text-align: center;">
या चाहे जहाँ
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
हमें उत्तराधिकार में नहीं चाहिए पुस्तकें
+
</div>
कोई झपटेगा पास बुक पर
+
कोई ढूंढ़ेंगा लाकर की चाबी
+
किसी की आँखों में चमकेंगे खेत
+
किसी के गड़े हुए सिक्के
+
हाय हाय, समय
+
बूढ़ी दादी सी उदास हो जाएँगी
+
पुस्तकें
+
  
पुस्तकों!
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
जहाँ भी रख दें वे
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
पड़ी रहना इंतजार में
+
अपरिचित पास आओ
  
आयेगा कोई न कोई
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
दिग्भ्रमित बालक जरूर
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
किसी शताब्दी में
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
अंधेरे में टटोलता अपनी राह
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
स्पर्श से पहचान लेना उसे
+
सबमें अपनेपन की माया
आहिस्ते-आहिस्ते खोलना अपना हृदय
+
अपने पन में जीवन आया
जिसमें सोया है अनन्त समय
+
</div>
और थका हुआ सत्य
+
</div></div>
दबा हुआ गुस्सा
+
और गूंगा प्यार
+
दुश्मनों के जासूस
+
पकड़ नहीं सके जिसे!
+
</pre>
+
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
+

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया