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"जन्म-कुंडली / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर
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ओस के बारे में सोचा है – | ओस के बारे में सोचा है – | ||
किरणों की नोकों से ठहराकर | किरणों की नोकों से ठहराकर | ||
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ज्योति-बिन्दु फूलों पर | ज्योति-बिन्दु फूलों पर | ||
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किस ज्योतिर्विद ने | किस ज्योतिर्विद ने | ||
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इस जगमग खगोल की | इस जगमग खगोल की | ||
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जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ? | जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ? | ||
फिर क्यों निःश्लेष किया | फिर क्यों निःश्लेष किया | ||
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अलंकरण पर भर में ? | अलंकरण पर भर में ? | ||
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किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ? | किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ? | ||
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और फिर उनको भी सोचा है – | और फिर उनको भी सोचा है – | ||
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वृक्षों के तले पड़े | वृक्षों के तले पड़े | ||
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फटे-चिटे पत्ते----- | फटे-चिटे पत्ते----- | ||
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उनकी अंकगणित में | उनकी अंकगणित में | ||
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कैसी यह उधेडबुन ? | कैसी यह उधेडबुन ? | ||
हवा कुछ गिनती हैः | हवा कुछ गिनती हैः | ||
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गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती | गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती | ||
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और कहीं पर रखती है । | और कहीं पर रखती है । | ||
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कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर | कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर | ||
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यों ही फेंक देती है मरोड़कर ...। | यों ही फेंक देती है मरोड़कर ...। | ||
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कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष- | कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष- | ||
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गोदती चली जाती...वृक्ष...वृक्ष...वृक्ष | गोदती चली जाती...वृक्ष...वृक्ष...वृक्ष | ||
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15:54, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
फूलों पर पड़े-पड़े अकसर मैंने
ओस के बारे में सोचा है –
किरणों की नोकों से ठहराकर
ज्योति-बिन्दु फूलों पर
किस ज्योतिर्विद ने
इस जगमग खगोल की
जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ?
फिर क्यों निःश्लेष किया
अलंकरण पर भर में ?
एक से शून्य तक
किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है ?
और फिर उनको भी सोचा है –
वृक्षों के तले पड़े
फटे-चिटे पत्ते-----
उनकी अंकगणित में
कैसी यह उधेडबुन ?
हवा कुछ गिनती हैः
गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती
और कहीं पर रखती है ।
कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर
यों ही फेंक देती है मरोड़कर ...।
कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ – अंतरिक्ष-
गोदती चली जाती...वृक्ष...वृक्ष...वृक्ष