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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''माँ का नाच<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[बोधिसत्व]]
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वहाँ कई स्त्रियाँ थीं
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जो नाच रही थीं, गाते हुए
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वे खेत में नाच रही थीं या
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
आंगन में यह उन्हें भी नहीं पता था
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
एक मटमैले वितान के नीचे था
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चल रहा यह नाच ।
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कोई पीली साड़ी पहने थी
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<div style="text-align: center;">
कोई धानी
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
कोई गुलाबी, कोई जोगन-सी
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</div>
सब नाचते हुए मदद कर रही थीं
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एक-दूसरे की
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थोड़ी देर नाच कर दूसरी के लिए
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हट जाती थीं वे नाचने की जगह से ।
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कुछ देर बाद बारी आई माँ के नाचने की
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
उसने बहुत सधे ढंग से
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
शुरू किया नाचना
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अपरिचित पास आओ
गाना शुरू किया बहुत पुराने तरीके से
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पुराना गीत
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माँ के बाद नाचना था जिन्हें वे भी
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जो नाच चुकी थीं वे भी अचम्भित
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मन ही मन नाच रही थीं माँ के साथ ।
+
  
मटमैले वितान के नीचे
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
इस छोर से उस छोर तक नाच रही थी माँ
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
पैरों में बिवाइयाँ थीं गहरे तक फटी
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
टूट चुके थे घुटने कई बार
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
झुक चली थी कमर
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
पर जैसे भँवर घूमता है
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
जैसे बवंडर नाचता है वैसे
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नाच रही थी माँ ।
+
  
आज बहुत दिनों बाद उसे
+
सबमें अपनेपन की माया
मिला था नाचने का मौका
+
अपने पन में जीवन आया
और वह नाच रही थी बिना रुके
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गा रही थी बहुत पुराना गीत
+
</div></div>
गहरे सुरों में ।
+
 
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अचानक ही हुआ माँ का गाना बन्द
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पर नाचना जारी रहा
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वह इतनी गति में थी कि परबस
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घूमती जा रही थी
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फिर गाने की जगह उठा विलाप का स्वर
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और फैलता चला गया उसका वितान ।
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वह नाचती रही बिलखते हुए
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धरती के इस छोर से उस छोर तक
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समुद्र की लहरों से लेकर जुते हुए खेत तक
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सब भरे से उसके नाच की धमक से
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सब में समाया था उसका बिलखता हुआ गाना ।
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</pre>
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया