ऋषभ देव शर्मा (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=ताकि सनद रहे }} <Poem> गोल महल ...) |
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दरवाज़े हैं बंद | दरवाज़े हैं बंद | ||
| − | झरोखों तक | + | झरोखों तक |
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दिवा रात्रि का आवर्तन है | दिवा रात्रि का आवर्तन है | ||
| − | चमगादड़ की फेरी; | + | चमगादड़ की फेरी; |
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23:51, 23 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
गोल महल में
भारी बदबू,
सीलन औ' अवसाद;
धूप से
टूट गया संवाद।
कुर्सीजीवी कीट
बोझ से
धरती दबा रहे हैं;
मोटी एक किताब,
उसी के
पन्ने चबा रहे हैं;
दरवाज़े हैं बंद
झरोखों तक
मलबे की ढेरी;
दिवा रात्रि का आवर्तन है
चमगादड़ की फेरी;
इसको दफ़न करें मिटटी में
बन जाने दें -
खाद !