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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''यार दहलीज़ छू कर<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विजय वाते]]
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यार दहलीज़ छू कर ना जाया करो|
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तुम कभी दोस्त बनकर भी आया करो|
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क्या ज़रूरी है सुख दुख में ही बात हो,
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
जब कभी फोन यूँ ही लगाया करो|
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
बीते आवारा दिन याद करके कभी,
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<div style="text-align: center;">
अपने ठीये पे चक्कर लगाया करो|
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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वक़्त की रेत मुट्ठी में रुकती नहीं,
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
इसलिए कुछ हरे पल चुराया करो|
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
हमने गुमटी पर कल चाय पी थी "विजय"
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
तुम भी आकर के मज़मे लगाया करो|
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया