अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | |रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल' | ||
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सफलता पाँव चूमे गम का कोई भी न पल आए | सफलता पाँव चूमे गम का कोई भी न पल आए | ||
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दुआ है हर किसी की जिन्दगी में ऐसा कल आए। | दुआ है हर किसी की जिन्दगी में ऐसा कल आए। | ||
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ये डर पतझड़ में था अब पेड़ सूने ही न रह जाएँ | ये डर पतझड़ में था अब पेड़ सूने ही न रह जाएँ | ||
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मगर कुछ रोज़ में ही फिर नए पत्ते निकल आए। | मगर कुछ रोज़ में ही फिर नए पत्ते निकल आए। | ||
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हमारे आपके खुद चाहने भर से ही क्या होगा | हमारे आपके खुद चाहने भर से ही क्या होगा | ||
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घटाएँ भी अगर चाहें तभी अच्छी फसल आए। | घटाएँ भी अगर चाहें तभी अच्छी फसल आए। | ||
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हमें बारिश ने मौका दे दिया असली परखने का | हमें बारिश ने मौका दे दिया असली परखने का | ||
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जो कच्चे रंग वाले थे वो अपने रंग बदल आए। | जो कच्चे रंग वाले थे वो अपने रंग बदल आए। | ||
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जहाँ जिस द्वार पर देखेंगे दाना आ ही जाएँगे | जहाँ जिस द्वार पर देखेंगे दाना आ ही जाएँगे | ||
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परिन्दों को भी क्या मतलब कुटी आए महल आए। | परिन्दों को भी क्या मतलब कुटी आए महल आए। | ||
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हमारा क्या हम अपनी दुश्मनी भी भूल जाएँगे | हमारा क्या हम अपनी दुश्मनी भी भूल जाएँगे | ||
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मगर उस ओर से भी दोस्ती की कुछ पहल आए। | मगर उस ओर से भी दोस्ती की कुछ पहल आए। | ||
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अभी तो ताल सूखा है अभी उसमें दरारें हैं | अभी तो ताल सूखा है अभी उसमें दरारें हैं | ||
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पता क्या अगली बरसातों में उसमें भी कमल आए। | पता क्या अगली बरसातों में उसमें भी कमल आए। | ||
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22:52, 4 मई 2010 के समय का अवतरण
सफलता पाँव चूमे गम का कोई भी न पल आए
दुआ है हर किसी की जिन्दगी में ऐसा कल आए।
ये डर पतझड़ में था अब पेड़ सूने ही न रह जाएँ
मगर कुछ रोज़ में ही फिर नए पत्ते निकल आए।
हमारे आपके खुद चाहने भर से ही क्या होगा
घटाएँ भी अगर चाहें तभी अच्छी फसल आए।
हमें बारिश ने मौका दे दिया असली परखने का
जो कच्चे रंग वाले थे वो अपने रंग बदल आए।
जहाँ जिस द्वार पर देखेंगे दाना आ ही जाएँगे
परिन्दों को भी क्या मतलब कुटी आए महल आए।
हमारा क्या हम अपनी दुश्मनी भी भूल जाएँगे
मगर उस ओर से भी दोस्ती की कुछ पहल आए।
अभी तो ताल सूखा है अभी उसमें दरारें हैं
पता क्या अगली बरसातों में उसमें भी कमल आए।