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"कविता / मुकुटधर पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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कविता सुललित पारिजात का हास है,  
 
कविता सुललित पारिजात का हास है,  
 
 
कविता नश्वर जीवन का उल्लास है ।  
 
कविता नश्वर जीवन का उल्लास है ।  
 
 
कविता रमणी के उर का प्रतिरूप है ,  
 
कविता रमणी के उर का प्रतिरूप है ,  
 
 
कविता शैशव का सुविचार अनूप है ।  
 
कविता शैशव का सुविचार अनूप है ।  
 
 
कविता भावोन्मत्तों का सुप्रलाप है,  
 
कविता भावोन्मत्तों का सुप्रलाप है,  
 
 
कविता कांत-जनों का मृदु आलाप है ।  
 
कविता कांत-जनों का मृदु आलाप है ।  
 
 
कविता गत गौरव का स्मरण-विधान है,
 
कविता गत गौरव का स्मरण-विधान है,
 
 
कविता चिर-विरही का सकरुण गान है ।  
 
कविता चिर-विरही का सकरुण गान है ।  
 
 
कविता अंतर उर का वचन-प्रवाह है,  
 
कविता अंतर उर का वचन-प्रवाह है,  
 
 
कविता कारा बद्ध हृदय की आह है ।  
 
कविता कारा बद्ध हृदय की आह है ।  
 
 
कविता भग्न मनोरथ का उद्गार है,  
 
कविता भग्न मनोरथ का उद्गार है,  
 
 
कविता सुंदर एक  संसार है ।
 
कविता सुंदर एक  संसार है ।
 
 
कविता वर वीरों का स्वर करवाल है,
 
कविता वर वीरों का स्वर करवाल है,
 
 
कविता आत्मोद्धारण हेतु दृढ़ ढाल है ।  
 
कविता आत्मोद्धारण हेतु दृढ़ ढाल है ।  
 
 
कविता कोई लोकोत्तर आह्लाद है,  
 
कविता कोई लोकोत्तर आह्लाद है,  
 
 
कविता सरस्वती का परम प्रसाद है ।  
 
कविता सरस्वती का परम प्रसाद है ।  
 
 
कविता मधुमय-सुधा-ललित की है घटा,  
 
कविता मधुमय-सुधा-ललित की है घटा,  
 
 
कविता कवि के एक स्वप्न की है छटा ।  
 
कविता कवि के एक स्वप्न की है छटा ।  
  
 
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'''(चन्द्रप्रभा, 1917 में प्रकाशित)'''
(चन्द्रप्रभा, 1917 में प्रकाशित)
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18:13, 16 जून 2015 के समय का अवतरण

कविता सुललित पारिजात का हास है,
कविता नश्वर जीवन का उल्लास है ।
कविता रमणी के उर का प्रतिरूप है ,
कविता शैशव का सुविचार अनूप है ।
कविता भावोन्मत्तों का सुप्रलाप है,
कविता कांत-जनों का मृदु आलाप है ।
कविता गत गौरव का स्मरण-विधान है,
कविता चिर-विरही का सकरुण गान है ।
कविता अंतर उर का वचन-प्रवाह है,
कविता कारा बद्ध हृदय की आह है ।
कविता भग्न मनोरथ का उद्गार है,
कविता सुंदर एक संसार है ।
कविता वर वीरों का स्वर करवाल है,
कविता आत्मोद्धारण हेतु दृढ़ ढाल है ।
कविता कोई लोकोत्तर आह्लाद है,
कविता सरस्वती का परम प्रसाद है ।
कविता मधुमय-सुधा-ललित की है घटा,
कविता कवि के एक स्वप्न की है छटा ।

(चन्द्रप्रभा, 1917 में प्रकाशित)