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"आमों की तारीफ़ में / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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हाँ दिल-ए-दर्दमंद ज़म-ज़मा साज़
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क्यूँ न खोले दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़
  
हाँ दिल-ए-दर्दमंद ज़म-ज़मा साज़<br>
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ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना
क्यूँ न खोले दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़<br><br>
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शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना
  
ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना<br>
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मुझ से क्या पूछता है क्या लिखिये
शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना<br><br>
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नुक़्ता हाये ख़िरदफ़िशाँ लिखिये
  
मुझ से क्या पूछता है क्या लिखिये<br>
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बारे, आमों का कुछ बयाँ हो जाये
नुक़्ता हाये ख़िरदफ़िशाँ लिखिये<br><br>
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ख़ामा नख़्ले रतबफ़िशाँ हो जाये
  
बारे, आमों का कुछ बयाँ हो जाये<br>
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आम का कौन मर्द-ए-मैदाँ है
ख़ामा नख़्ले रतबफ़िशाँ हो जाये<br><br>
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समर-ओ-शाख़, गुवे-ओ-चौगाँ है
  
आम का कौन मर्द-ए-मैदाँ है<br>
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ताक के जी में क्यूँ रहे अर्माँ
समर-ओ-शाख़, गुवे-ओ-चौगाँ है<br><br>
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आये, ये गुवे और ये मैदाँ!
  
ताक के जी में क्यूँ रहे अर्माँ<br>
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आम के आगे पेश जावे ख़ाक
आये, ये गुवे और ये मैदाँ!<br><br>
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फोड़ता है जले फफोले ताक
  
आम के आगे पेश जावे ख़ाक<br>
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न चला जब किसी तरह मक़दूर
फोड़ता है जले फफोले ताक<br><br>
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बादा-ए-नाब बन गया अंगूर
  
न चला जब किसी तरह मक़दूर<br>
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ये भी नाचार जी का खोना है
बादा-ए-नाब बन गया अंगूर<br><br>
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शर्म से पानी पानी होना है
  
ये भी नाचार जी का खोना है<br>
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मुझसे पूछो, तुम्हें ख़बर क्या है
शर्म से पानी पानी होना है<br><br>
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आम के आगे नेशकर क्या है
  
मुझसे पूछो, तुम्हें ख़बर क्या है<br>
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न गुल उस में न शाख़-ओ-बर्ग न बार
आम के आगे नेशकर क्या है<br><br>
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जब ख़िज़ाँ आये तब हो उस की बहार
  
न गुल उस में न शाख़--बर्ग न बार<br>
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और दौड़ाइए क़यास कहाँ
जब ख़िज़ाँ आये तब हो उस की बहार<br><br>
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जान--शीरीँ में ये मिठास कहाँ
  
और दौड़ाइए क़यास कहाँ<br>
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जान में होती गर ये शीरीनी
जान-ए-शीरीँ में ये मिठास कहाँ<br><br>
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'कोहकन' बावजूद-ए-ग़मगीनी
 
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जान में होती गर ये शीरीनी<br>
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20:44, 1 जून 2013 के समय का अवतरण

हाँ दिल-ए-दर्दमंद ज़म-ज़मा साज़
क्यूँ न खोले दर-ए-ख़ज़िना-ए-राज़

ख़ामे का सफ़्हे पर रवाँ होना
शाख़-ए-गुल का है गुल-फ़िशाँ होना

मुझ से क्या पूछता है क्या लिखिये
नुक़्ता हाये ख़िरदफ़िशाँ लिखिये

बारे, आमों का कुछ बयाँ हो जाये
ख़ामा नख़्ले रतबफ़िशाँ हो जाये

आम का कौन मर्द-ए-मैदाँ है
समर-ओ-शाख़, गुवे-ओ-चौगाँ है

ताक के जी में क्यूँ रहे अर्माँ
आये, ये गुवे और ये मैदाँ!

आम के आगे पेश जावे ख़ाक
फोड़ता है जले फफोले ताक

न चला जब किसी तरह मक़दूर
बादा-ए-नाब बन गया अंगूर

ये भी नाचार जी का खोना है
शर्म से पानी पानी होना है

मुझसे पूछो, तुम्हें ख़बर क्या है
आम के आगे नेशकर क्या है

न गुल उस में न शाख़-ओ-बर्ग न बार
जब ख़िज़ाँ आये तब हो उस की बहार

और दौड़ाइए क़यास कहाँ
जान-ए-शीरीँ में ये मिठास कहाँ

जान में होती गर ये शीरीनी
'कोहकन' बावजूद-ए-ग़मगीनी