भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोज़ बनाता हूँ एक तस्वीर / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: मैं रोज़ बनाता हूँ - एक तस्वीर किसी बहुत बड़े कैनवास पर कैनवास या...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=रवीन्द्र दास | ||
+ | }} | ||
+ | <poem> | ||
मैं रोज़ बनाता हूँ - | मैं रोज़ बनाता हूँ - | ||
एक तस्वीर | एक तस्वीर | ||
पंक्ति 17: | पंक्ति 21: | ||
मुझसे पूछे बिना | मुझसे पूछे बिना | ||
किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच ! | किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच ! | ||
+ | </poem> |
23:26, 6 जून 2009 के समय का अवतरण
मैं रोज़ बनाता हूँ -
एक तस्वीर
किसी बहुत बड़े कैनवास पर
कैनवास यानि पूरी दुनिया
आसमान, पहाडी, मैदान, नदियाँ, फूल, घर,
और घरों में खुली-खुली खिड़कियाँ ......
और सबसे आखिर में
देर तक तजवीज़ करके
रखता हूँ ख़ुद को-
अपनी खास पसंदीदा ज़गह पर
लेकिन आँखों से ओझल होते ही तस्वीरों के
बदल जाती है मेरी ज़गह .....
ऐसा ही होता है हर बार,
जब मुझे लगता है
दुनिया वही है जो पहले थी सिर्फ़ बदल दी गई है मेरी ज़गह
मुझसे पूछे बिना
किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच !