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"रोज़ बनाता हूँ एक तस्वीर / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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मैं रोज़ बनाता हूँ -  
 
मैं रोज़ बनाता हूँ -  
 
 
एक तस्वीर
 
एक तस्वीर
 
 
किसी बहुत बड़े कैनवास पर
 
किसी बहुत बड़े कैनवास पर
 
 
कैनवास यानि पूरी दुनिया
 
कैनवास यानि पूरी दुनिया
 
 
आसमान, पहाडी, मैदान, नदियाँ, फूल, घर,
 
आसमान, पहाडी, मैदान, नदियाँ, फूल, घर,
 
 
और घरों में खुली-खुली खिड़कियाँ ......
 
और घरों में खुली-खुली खिड़कियाँ ......
 
 
और सबसे आखिर में
 
और सबसे आखिर में
 
 
देर तक तजवीज़ करके
 
देर तक तजवीज़ करके
 
 
रखता हूँ ख़ुद को-
 
रखता हूँ ख़ुद को-
 
 
अपनी खास पसंदीदा ज़गह पर
 
अपनी खास पसंदीदा ज़गह पर
 
 
लेकिन आँखों से ओझल होते ही तस्वीरों के
 
लेकिन आँखों से ओझल होते ही तस्वीरों के
 
 
बदल जाती है मेरी ज़गह .....
 
बदल जाती है मेरी ज़गह .....
 
 
ऐसा ही होता है हर बार,
 
ऐसा ही होता है हर बार,
 
 
जब मुझे लगता है
 
जब मुझे लगता है
 
 
दुनिया वही है जो पहले थी सिर्फ़ बदल दी गई है मेरी ज़गह
 
दुनिया वही है जो पहले थी सिर्फ़ बदल दी गई है मेरी ज़गह
 
 
मुझसे पूछे बिना
 
मुझसे पूछे बिना
 
 
किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच !
 
किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच !
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23:26, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

मैं रोज़ बनाता हूँ -
एक तस्वीर
किसी बहुत बड़े कैनवास पर
कैनवास यानि पूरी दुनिया
आसमान, पहाडी, मैदान, नदियाँ, फूल, घर,
और घरों में खुली-खुली खिड़कियाँ ......
और सबसे आखिर में
देर तक तजवीज़ करके
रखता हूँ ख़ुद को-
अपनी खास पसंदीदा ज़गह पर
लेकिन आँखों से ओझल होते ही तस्वीरों के
बदल जाती है मेरी ज़गह .....
ऐसा ही होता है हर बार,
जब मुझे लगता है
दुनिया वही है जो पहले थी सिर्फ़ बदल दी गई है मेरी ज़गह
मुझसे पूछे बिना
किसी असुविधाजनक प्रसंगों के बीच !