"पहला पन्ना / आलोक श्रीवास्तव-२" के अवतरणों में अंतर
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निकोलाई चेर्नीशेव्स्की की वेरा के लिये - जिसने चार सपने देखे थे । हर सपने में ढेर सारे दृश्य थे - फूलों के कई रंग, आकाश का दैदीप्य नीलापन और धरती के कई नजारे थे । ये सपने सौंदर्य और प्रेम की विराट दृश्यावलियाँ थे, जिनमें एक नया जीवन - उल्लसित जीवन हिलोरें ले रहा था । धरती का यह सबसे सुंदर सपना था - अनुभूति की अप्रतिम कविता । एक जीवंत मार्मिकता । खरी, बेलौस, सच्ची भावना का महान विस्मय जगत । जीवन का सजल गान ! यह वेरा कोई सवा सौ साल पहले रूस के एक शहर की गलियों-सड़कों में थी, और शायद आज भी हमारे देश के अनाम घरों, रास्तों, मैदानों में भी वैसे ही सपने देख रही है । कभी-कभी इत्तेफाक से वह हमारे जीवन में आती है और अपने सपनॊं की छाया हममें छोड़ जाती है । फिर हम उसका सपना जीते हैं, और वह सपना जीवन से बड़ा होने लगता है .... | निकोलाई चेर्नीशेव्स्की की वेरा के लिये - जिसने चार सपने देखे थे । हर सपने में ढेर सारे दृश्य थे - फूलों के कई रंग, आकाश का दैदीप्य नीलापन और धरती के कई नजारे थे । ये सपने सौंदर्य और प्रेम की विराट दृश्यावलियाँ थे, जिनमें एक नया जीवन - उल्लसित जीवन हिलोरें ले रहा था । धरती का यह सबसे सुंदर सपना था - अनुभूति की अप्रतिम कविता । एक जीवंत मार्मिकता । खरी, बेलौस, सच्ची भावना का महान विस्मय जगत । जीवन का सजल गान ! यह वेरा कोई सवा सौ साल पहले रूस के एक शहर की गलियों-सड़कों में थी, और शायद आज भी हमारे देश के अनाम घरों, रास्तों, मैदानों में भी वैसे ही सपने देख रही है । कभी-कभी इत्तेफाक से वह हमारे जीवन में आती है और अपने सपनॊं की छाया हममें छोड़ जाती है । फिर हम उसका सपना जीते हैं, और वह सपना जीवन से बड़ा होने लगता है .... | ||
....ये कवितायें कुछ सपनों, कुछ फूलों, कुछ मौसमों के रंगों और कुछ नदियों, पहाडों, मैदानों की स्मृतियों से मिल कर बनी है - जिन्हें अपने चार सपनों की अनंत दृश्यावलियों में वेरा देखती रही । आज जहां भी, जिस भी गांव-शहर के गली-मकानों में वेरा सपना देख रही है उनका पता इन कविताओं में है । वेरा का सपना भी इनमें है और उसके शहर का रास्ता भी .... | ....ये कवितायें कुछ सपनों, कुछ फूलों, कुछ मौसमों के रंगों और कुछ नदियों, पहाडों, मैदानों की स्मृतियों से मिल कर बनी है - जिन्हें अपने चार सपनों की अनंत दृश्यावलियों में वेरा देखती रही । आज जहां भी, जिस भी गांव-शहर के गली-मकानों में वेरा सपना देख रही है उनका पता इन कविताओं में है । वेरा का सपना भी इनमें है और उसके शहर का रास्ता भी .... | ||
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14:59, 19 मई 2009 के समय का अवतरण
निकोलाई चेर्नीशेव्स्की की वेरा के लिये - जिसने चार सपने देखे थे । हर सपने में ढेर सारे दृश्य थे - फूलों के कई रंग, आकाश का दैदीप्य नीलापन और धरती के कई नजारे थे । ये सपने सौंदर्य और प्रेम की विराट दृश्यावलियाँ थे, जिनमें एक नया जीवन - उल्लसित जीवन हिलोरें ले रहा था । धरती का यह सबसे सुंदर सपना था - अनुभूति की अप्रतिम कविता । एक जीवंत मार्मिकता । खरी, बेलौस, सच्ची भावना का महान विस्मय जगत । जीवन का सजल गान ! यह वेरा कोई सवा सौ साल पहले रूस के एक शहर की गलियों-सड़कों में थी, और शायद आज भी हमारे देश के अनाम घरों, रास्तों, मैदानों में भी वैसे ही सपने देख रही है । कभी-कभी इत्तेफाक से वह हमारे जीवन में आती है और अपने सपनॊं की छाया हममें छोड़ जाती है । फिर हम उसका सपना जीते हैं, और वह सपना जीवन से बड़ा होने लगता है ....
....ये कवितायें कुछ सपनों, कुछ फूलों, कुछ मौसमों के रंगों और कुछ नदियों, पहाडों, मैदानों की स्मृतियों से मिल कर बनी है - जिन्हें अपने चार सपनों की अनंत दृश्यावलियों में वेरा देखती रही । आज जहां भी, जिस भी गांव-शहर के गली-मकानों में वेरा सपना देख रही है उनका पता इन कविताओं में है । वेरा का सपना भी इनमें है और उसके शहर का रास्ता भी ....