भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=ग़ालिब
 
|रचनाकार=ग़ालिब
 +
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
एक-एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
 +
ख़ून-ए-जिगर, वदीअ़त-ए-मिज़गान-ए-यार<ref>प्रेमी के पलकों की धरोहर</ref> था
  
एक-एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब<br>
+
अब मैं हूँ और मातम-ए-यक-शहर-आरज़ू<ref>अभिलाषाओं रूपी महल के उजड़ जाने का शोक</ref>
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़गान-ए-यार था<br><br>
+
तोड़ा जो तूने आईना तिमसाल-दार<ref>चित्रमय</ref> था
  
अब मैं हूँ और मातम-ए-यक शहर-ए-आरज़ू<br>
+
गलियों में मेरी नाश<ref>लाश</ref> को खींचे फिरो कि मैं
तोड़ा जो तू ने आईना तिम्सालदार था<br><br>
+
जां-दादा-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार<ref>गली-2 घूमने-फिरने की इच्छा का पीड़ित</ref> था
  
गलियों में मेरी लाश को खेंचे फिरो कि मैं<br>
+
मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा<ref>वफा के मरुस्थल की मरीचिका</ref> का न पूछ हाल
जाँ दाद-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार था<br><br>
+
हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़<ref>तलवार की धार की तरह</ref> आबदार<ref>चमकदार</ref> था
  
मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल<br>
+
कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब
हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ आबदार था<br><br>
+
देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार<ref>संसार-सम्बंधी ग़म</ref> था
  
कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब<br>
+
किस का जुनून-ए-दीद तमन्ना-शिकार था
देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार था<br><br>
+
आईना-ख़ाना वादी-ए-जौहर<ref>मिट्टी</ref>-ग़ुबार था
 +
 
 +
किस का ख़याल आईना-ए-इन्तिज़ार था
 +
हर बरग<ref>पत्ती</ref>-ए-गुल के परदे में दिल बे-क़रार था
 +
 
 +
जूं<ref>जैसे</ref> ग़ुन्चा-ओ-गुल आफ़त-ए-फ़ाल-ए-नज़र<ref>निगाह के जादू की दुर्घटना</ref> न पूछ
 +
पैकां<ref>तरकश</ref> से तेरे जलवा-ए-ज़ख़म आशकार<ref>प्रकट</ref> था
 +
 
 +
देखी वफ़ा-ए-फ़ुरसत-ए-रंज-ओ-निशात-ए-दहर<ref>संसार की खुशी और गम के मौके की निष्ठा</ref>
 +
ख़मियाज़ा यक दराज़ी-ए-उमर-ए-ख़ुमार<ref>अंगड़ाई में जिंदगी भर का नशा</ref> था
 +
 
 +
सुबह-ए-क़यामत एक दुम-ए-गुरग<ref>अकेले भेड़िये की पूँछ</ref> थी असद
 +
जिस दश्त<ref>रेगिस्तान</ref> में वह शोख़-ए-दो-आ़लम<ref>बहुत चंचल</ref> शिकार था
 +
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

01:10, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण

एक-एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर, वदीअ़त-ए-मिज़गान-ए-यार<ref>प्रेमी के पलकों की धरोहर</ref> था

अब मैं हूँ और मातम-ए-यक-शहर-आरज़ू<ref>अभिलाषाओं रूपी महल के उजड़ जाने का शोक</ref>
तोड़ा जो तूने आईना तिमसाल-दार<ref>चित्रमय</ref> था

गलियों में मेरी नाश<ref>लाश</ref> को खींचे फिरो कि मैं
जां-दादा-ए-हवा-ए-सर-ए-रहगुज़ार<ref>गली-2 घूमने-फिरने की इच्छा का पीड़ित</ref> था

मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा<ref>वफा के मरुस्थल की मरीचिका</ref> का न पूछ हाल
हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़<ref>तलवार की धार की तरह</ref> आबदार<ref>चमकदार</ref> था

कम जानते थे हम भी ग़म-ए-इश्क़ को पर अब
देखा तो कम हुए पे ग़म-ए-रोज़गार<ref>संसार-सम्बंधी ग़म</ref> था

किस का जुनून-ए-दीद तमन्ना-शिकार था
आईना-ख़ाना वादी-ए-जौहर<ref>मिट्टी</ref>-ग़ुबार था

किस का ख़याल आईना-ए-इन्तिज़ार था
हर बरग<ref>पत्ती</ref>-ए-गुल के परदे में दिल बे-क़रार था

जूं<ref>जैसे</ref> ग़ुन्चा-ओ-गुल आफ़त-ए-फ़ाल-ए-नज़र<ref>निगाह के जादू की दुर्घटना</ref> न पूछ
पैकां<ref>तरकश</ref> से तेरे जलवा-ए-ज़ख़म आशकार<ref>प्रकट</ref> था

देखी वफ़ा-ए-फ़ुरसत-ए-रंज-ओ-निशात-ए-दहर<ref>संसार की खुशी और गम के मौके की निष्ठा</ref>
ख़मियाज़ा यक दराज़ी-ए-उमर-ए-ख़ुमार<ref>अंगड़ाई में जिंदगी भर का नशा</ref> था

सुबह-ए-क़यामत एक दुम-ए-गुरग<ref>अकेले भेड़िये की पूँछ</ref> थी असद
जिस दश्त<ref>रेगिस्तान</ref> में वह शोख़-ए-दो-आ़लम<ref>बहुत चंचल</ref> शिकार था

शब्दार्थ
<references/>