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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBB;border:1px solid #DD5511;'>
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''कविजन खोज रहे अमराई<br>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अष्टभुजा शुक्ल]]
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<pre style="overflow:auto;height:21em;">
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<div style="text-align: center;">
कविजन खोज रहे अमराई ।
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
जनता मरे , मिटे या डूबे इनने ख्याति कमाई ॥
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</div>
शब्दों का माठा मथ-मथकर कविता को खट्टाते ।
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और प्रशंसा के मक्खन कवि चाट-चाट रह जाते ॥
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
सोख रहीं गहरी मुषकैलें, डांड़ हो रहा पानी ।
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
गेहूं के पौधे मुरझाते , हैं अधबीच जवानी ॥
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अपरिचित पास आओ
बचा-खुचा भी चर लेते हैं , नीलगाय के झुंड ।
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ऊपर से हगनी-मुतनी में , खेत बन रहे कुंड ॥
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
कुहरे में रोता है सूरज केवल आंसू-आंसू ।
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
कविजन उसे रक्त कह-कहकर लिखते कविता धांसू ॥
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
बाली सरक रही सपने में , है बंहोर के नीचे ।
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
लगे गुदगुदी मानो हमने रति की चोली फींचे ॥
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
जागो तो सिर धुन पछताओ , हाय-हाय कर चीखो ।
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
अष्टभुजा पद क्यों करते हो कविता करना सीखो ॥
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया