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"दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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<poem>दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
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यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें
  
दोनों जहाँ दे के वो समझे ये ख़ुश रहा <br>
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थक-थक के हर मुक़ाम पे दो चार रह गये
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें<br><br>
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तेरा पता न पायें, तो नाचार<ref>जिनका बस ना चले</ref> क्या करें
  
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क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म<br>
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हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें<br><br>
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09:15, 5 मार्च 2010 के समय का अवतरण

दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें

थक-थक के हर मुक़ाम पे दो चार रह गये
तेरा पता न पायें, तो नाचार<ref>जिनका बस ना चले</ref> क्या करें

क्या शम्अ़ के नहीं है हवाख़्वाह<ref>शुभचिंतक</ref> अहल-ए-बज़्म<ref>महफिल वाले</ref>
हो ग़म ही जांगुदाज़<ref>जान घुलाने वाला</ref> तो ग़मख़्वार क्या करें

शब्दार्थ
<references/>