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"खड़ी बोली / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
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00:46, 8 मार्च 2010 के समय का अवतरण
भाषा की ऊष्मा से फूटते नहीं है शब्द
भीगी पोटली में अब ।
कविता बनाकर मैं मोड़ कर रख देता रहा हूँ
दो दिन में खोल कर पढ़ लेता रहा हूँ
आड़े-तिरछे अँखुए चिटख़ी दरारों में झाँकते मिले हैं ।
आज यह नहीं हुआ
सावधान !
क्या खड़ी बोली में अनजाना शब्द अब
नहीं रहा
जिसको परम्परा देती थी ?