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"बारिश हुई तो / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर
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− | कितने बुलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये | + | कितने बुलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये |
− | जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की ज़िद करें | + | जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की ज़िद करें |
− | बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये | + | बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये |
− | लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास | + | लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास |
− | सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गये | + | सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गये |
− | सूरज दिमाग़ लोग भी इब्लाग़-ए-फ़िक्र में | + | सूरज दिमाग़ लोग भी इब्लाग़-ए-फ़िक्र में |
− | ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गये | + | ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गये |
− | जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तगू हुई | + | जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तगू हुई |
− | लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गये | + | लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गये |
− | साहिल पे जितने आबगुज़ीदा थे सब के सब | + | साहिल पे जितने आबगुज़ीदा थे सब के सब |
− | दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गये< | + | दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गये |
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04:26, 13 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये
मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गये
बादल को क्या ख़बर कि बारिश की चाह में
कितने बुलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये
जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये
लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गये
सूरज दिमाग़ लोग भी इब्लाग़-ए-फ़िक्र में
ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गये
जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तगू हुई
लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गये
साहिल पे जितने आबगुज़ीदा थे सब के सब
दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गये