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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''हिन्दी कविता का दुःख<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजय]]
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अच्छे कवियों को सब हिदी वाले नकारते
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और बुरे कवियों के सौ-सौ गुण बघारते
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ऐसा क्यों है, ये बताएँ ज़रा, भाई अनिल जी
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अच्छे कवि क्यों नहीं कहलाते हैं सलिल जी
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क्यों ले-दे कर छपने वाले कवि बने हैं
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
क्यों हरी घास को चरने वाले कवि बने हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
परमानन्द और नवल सरीखे हिन्दी के लोचे
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क्यों देश-विदेश में हिन्दी रचना की छवि बने हैं
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क्यों शुक्ला, जोशी, लंठ सरीखे नागर, राठी
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<div style="text-align: center;">
हिन्दी कविता पर बैठे हैं चढ़ा कर काठी
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
पूछ रहे अपने ई-पत्र में सुशील कुमार जी
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</div>
कब बदलेगी हिन्दी कविता की यह परिपाटी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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अपरिचित पास आओ
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया