"आज भी आया था वह / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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आज भी आया था वह | आज भी आया था वह | ||
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आता है ऐसे ही अक्सर | आता है ऐसे ही अक्सर | ||
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खिसियासा, अकेले चिपकाए मुस्कान चेहरे पर | खिसियासा, अकेले चिपकाए मुस्कान चेहरे पर | ||
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पार्टी के कुछ लोग | पार्टी के कुछ लोग | ||
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करते हैं विरोध उसका | करते हैं विरोध उसका | ||
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कि मानते नहीं हैं सदस्य बनने योग्य भी उसे, | कि मानते नहीं हैं सदस्य बनने योग्य भी उसे, | ||
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तो भी टूटा नहीं होसला | तो भी टूटा नहीं होसला | ||
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अभी तक | अभी तक | ||
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कि ठीक हो जाता है मैनेज करने से सबकुछ | कि ठीक हो जाता है मैनेज करने से सबकुछ | ||
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पुरानी पहचान वाले लोग | पुरानी पहचान वाले लोग | ||
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जो जान भी गये हैं खेल उसका | जो जान भी गये हैं खेल उसका | ||
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बिगाड़ लेंगे क्या! | बिगाड़ लेंगे क्या! | ||
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कि दालान भर नहीं किसी की दुनिया | कि दालान भर नहीं किसी की दुनिया | ||
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बहुत बड़ी है | बहुत बड़ी है | ||
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पुराना मकान, पुरानी पहचान | पुराना मकान, पुरानी पहचान | ||
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दकियानूसी लोग ही रखते हैं बचाकर | दकियानूसी लोग ही रखते हैं बचाकर | ||
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जिसे करनी है तरक्की | जिसे करनी है तरक्की | ||
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जिसे जाना है नदी के पार | जिसे जाना है नदी के पार | ||
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कब तक ढोयेगा टोकड़ा मूल्यों का | कब तक ढोयेगा टोकड़ा मूल्यों का | ||
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ऐसे ही बोलता है नई पौधों के इर्द गिर्द | ऐसे ही बोलता है नई पौधों के इर्द गिर्द | ||
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कि जलते हैं लोग मेरी चतुराई से... | कि जलते हैं लोग मेरी चतुराई से... | ||
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लेकिन फिरता है फिफियात | लेकिन फिरता है फिफियात | ||
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लेकर चेहरे पर दैन्य भाव | लेकर चेहरे पर दैन्य भाव | ||
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बोल विनम्रता और सदासयता के | बोल विनम्रता और सदासयता के | ||
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कि यही मान लो कि जीत नहीं है मेरी | कि यही मान लो कि जीत नहीं है मेरी | ||
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यह मेरी हार है यही मान लो | यह मेरी हार है यही मान लो | ||
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शिक्षाप्रद कहानियाँ पंचतंत्र की | शिक्षाप्रद कहानियाँ पंचतंत्र की | ||
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बातें हैं गए जमाने की | बातें हैं गए जमाने की | ||
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एक न एक दिन, | एक न एक दिन, | ||
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सबको करेगा इकट्ठा | सबको करेगा इकट्ठा | ||
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चाहे बहलाकर, चाहे रिरियाकर | चाहे बहलाकर, चाहे रिरियाकर | ||
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और फिर करेगा अट्टहास दर्प का | और फिर करेगा अट्टहास दर्प का | ||
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इसी दिन की प्रतीक्षा में | इसी दिन की प्रतीक्षा में | ||
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आया है आज भी | आया है आज भी | ||
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चिपकाये हुए दीनता की खिसियानी मुस्कुराहट | चिपकाये हुए दीनता की खिसियानी मुस्कुराहट | ||
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चेहरे पर विनम्रता के साथ | चेहरे पर विनम्रता के साथ | ||
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प्रतीक्षा जारी है | प्रतीक्षा जारी है | ||
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सो डोलता है ऐसे ही अक्सर! | सो डोलता है ऐसे ही अक्सर! | ||
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18:12, 29 मई 2009 के समय का अवतरण
आज भी आया था वह
आता है ऐसे ही अक्सर
खिसियासा, अकेले चिपकाए मुस्कान चेहरे पर
पार्टी के कुछ लोग
करते हैं विरोध उसका
कि मानते नहीं हैं सदस्य बनने योग्य भी उसे,
तो भी टूटा नहीं होसला
अभी तक
कि ठीक हो जाता है मैनेज करने से सबकुछ
पुरानी पहचान वाले लोग
जो जान भी गये हैं खेल उसका
बिगाड़ लेंगे क्या!
कि दालान भर नहीं किसी की दुनिया
बहुत बड़ी है
पुराना मकान, पुरानी पहचान
दकियानूसी लोग ही रखते हैं बचाकर
जिसे करनी है तरक्की
जिसे जाना है नदी के पार
कब तक ढोयेगा टोकड़ा मूल्यों का
ऐसे ही बोलता है नई पौधों के इर्द गिर्द
कि जलते हैं लोग मेरी चतुराई से...
लेकिन फिरता है फिफियात
लेकर चेहरे पर दैन्य भाव
बोल विनम्रता और सदासयता के
कि यही मान लो कि जीत नहीं है मेरी
यह मेरी हार है यही मान लो
शिक्षाप्रद कहानियाँ पंचतंत्र की
बातें हैं गए जमाने की
एक न एक दिन,
सबको करेगा इकट्ठा
चाहे बहलाकर, चाहे रिरियाकर
और फिर करेगा अट्टहास दर्प का
इसी दिन की प्रतीक्षा में
आया है आज भी
चिपकाये हुए दीनता की खिसियानी मुस्कुराहट
चेहरे पर विनम्रता के साथ
प्रतीक्षा जारी है
सो डोलता है ऐसे ही अक्सर!