{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
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'''सिफ़ारतख़ानःए-जाँ'''
''[एक नज़्म हज़ार साल पुरानी]''
हमारे शहरे-दिल में इक सिफ़ारतख़ानः ए-जाँ<ref>प्राणों के दूतावास</ref> है
सरोदे-‘मंज़िले-मा-किब्रिया’<ref>वैभव, शान, ख़ुदा का नाम</ref> उसका तराना है
हक़ीक़त है फ़क़त इन्सान, बाक़ी सब फ़साना है
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