भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोलाहल सुन कर / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: कोलाहल सुनकर उड़ गई सारी चिड़िया फ़िर मैं अकेला रह गया निराश और ...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्र दास
 +
}}
 +
<poem>
 
कोलाहल सुनकर उड़ गई सारी चिड़िया
 
कोलाहल सुनकर उड़ गई सारी चिड़िया
 
 
फ़िर मैं अकेला रह गया  
 
फ़िर मैं अकेला रह गया  
 
 
निराश और हताश!
 
निराश और हताश!
 
 
मैं अकेलेपन में होना चाहता हूँ आस्तिक  
 
मैं अकेलेपन में होना चाहता हूँ आस्तिक  
 
 
वाज़िबन मैं कुछ भी होना चाहता हूँ ......
 
वाज़िबन मैं कुछ भी होना चाहता हूँ ......
 
 
आई है कोई अकेली चिड़िया
 
आई है कोई अकेली चिड़िया
 
 
मुझे अकेले उदास बैठा देख  
 
मुझे अकेले उदास बैठा देख  
 
+
चहचहा रही है
चहचाहा रही है
+
 
+
 
शायद कुछ गा रही है  
 
शायद कुछ गा रही है  
 
 
शायद कुछ शुभ संदेश सुना रही है
 
शायद कुछ शुभ संदेश सुना रही है
 
 
चाहकर भी नहीं समझ पा रहा
 
चाहकर भी नहीं समझ पा रहा
 
 
मैं उसका आशय
 
मैं उसका आशय
 
 
मानुष भाषा का पुतला हूँ मैं ओ चिडिया
 
मानुष भाषा का पुतला हूँ मैं ओ चिडिया
 
 
बोल न तू मानुष भाषा में
 
बोल न तू मानुष भाषा में
 
 
ओ चिडिया !
 
ओ चिडिया !
 
+
तू यूँ भी गा चहचहा
तू यूं भी गा चहचहा
+
 
+
 
लेकिन तू यहाँ से बिल्कुल मत जा
 
लेकिन तू यहाँ से बिल्कुल मत जा
 
 
जैसे मैं नहीं समझ पाया उसकी
 
जैसे मैं नहीं समझ पाया उसकी
 
 
चिडिया ने भी नहीं पहचानी मेरी पीडा
 
चिडिया ने भी नहीं पहचानी मेरी पीडा
 
 
चली गई मुझे अकेला करके
 
चली गई मुझे अकेला करके
 
+
समय के बियावान में...
समय के बियावान में ........
+
</Poem>

23:37, 6 जून 2009 के समय का अवतरण

कोलाहल सुनकर उड़ गई सारी चिड़िया
फ़िर मैं अकेला रह गया
निराश और हताश!
मैं अकेलेपन में होना चाहता हूँ आस्तिक
वाज़िबन मैं कुछ भी होना चाहता हूँ ......
आई है कोई अकेली चिड़िया
मुझे अकेले उदास बैठा देख
चहचहा रही है
शायद कुछ गा रही है
शायद कुछ शुभ संदेश सुना रही है
चाहकर भी नहीं समझ पा रहा
मैं उसका आशय
मानुष भाषा का पुतला हूँ मैं ओ चिडिया
बोल न तू मानुष भाषा में
ओ चिडिया !
तू यूँ भी गा चहचहा
लेकिन तू यहाँ से बिल्कुल मत जा
जैसे मैं नहीं समझ पाया उसकी
चिडिया ने भी नहीं पहचानी मेरी पीडा
चली गई मुझे अकेला करके
समय के बियावान में...