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"तुम हमारे हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
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− | उठा तो पर न सँभलने पाया | + | नहीं मालूम क्यों यहाँ आया |
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− | ताब बेताब हुई हठ भी हटी | + | ताब बेताब हुई हठ भी हटी |
− | नाम अभिमान का भी छोड़ | + | नाम अभिमान का भी छोड़ दिया। |
− | देखा तो थी माया की डोर कटी | + | देखा तो थी माया की डोर कटी |
− | सुना | + | सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया। |
− | पर अहो पास छोड़ आते ही | + | पर अहो पास छोड़ आते ही |
− | वह सब भूत फिर सवार | + | वह सब भूत फिर सवार हुए। |
− | मुझे गफलत में ज़रा पाते ही | + | मुझे गफलत में ज़रा पाते ही |
− | फिर वही पहले के से वार | + | फिर वही पहले के से वार हुए। |
− | एक भी हाथ सँभाला न गया | + | एक भी हाथ सँभाला न गया |
− | और कमज़ोरों का बस क्या | + | और कमज़ोरों का बस क्या है। |
− | कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया, | + | कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया, |
− | मुझे दुख देने में जस क्या | + | मुझे दुख देने में जस क्या है। |
− | रात को सोते | + | रात को सोते यह सपना देखा |
− | कि | + | कि वह कहते हैं "तुम हमारे हो |
− | भला अब तो मुझे अपना देखा, | + | भला अब तो मुझे अपना देखा, |
− | कौन कहता है कि तुम हारे | + | कौन कहता है कि तुम हारे हो। |
− | अब अगर कोई भी सताये तुम्हें | + | अब अगर कोई भी सताये तुम्हें |
− | तो मेरी याद वहीं कर लेना | + | तो मेरी याद वहीं कर लेना |
− | नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें | + | नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें |
− | प्रेम के भाव | + | प्रेम के भाव तुरत भर लेना"। |
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11:52, 15 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
नहीं मालूम क्यों यहाँ आया
ठोकरें खाते हुए दिन बीते।
उठा तो पर न सँभलने पाया
गिरा व रह गया आँसू पीते।
ताब बेताब हुई हठ भी हटी
नाम अभिमान का भी छोड़ दिया।
देखा तो थी माया की डोर कटी
सुना वह कहते हैं, हाँ खूब किया।
पर अहो पास छोड़ आते ही
वह सब भूत फिर सवार हुए।
मुझे गफलत में ज़रा पाते ही
फिर वही पहले के से वार हुए।
एक भी हाथ सँभाला न गया
और कमज़ोरों का बस क्या है।
कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया,
मुझे दुख देने में जस क्या है।
रात को सोते यह सपना देखा
कि वह कहते हैं "तुम हमारे हो
भला अब तो मुझे अपना देखा,
कौन कहता है कि तुम हारे हो।
अब अगर कोई भी सताये तुम्हें
तो मेरी याद वहीं कर लेना
नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें
प्रेम के भाव तुरत भर लेना"।