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"बेदर्द / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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बिना दर्द का मन !
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19:29, 6 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

मैंने निचोड़कर दर्द
मन को
मानो सूखने के ख़याल से
रस्सी पर डाल दिया है

और मन
सूख रहा है

बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जाएगा
तब फिर पहन लूँगा मैं उसे

माँग जो रहा है मेरा
बेवकूफ तन
बिना दर्द का मन !