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"अच्छा अनुभव / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | मेरे बहुत पास | + | {{KKCatKavita}} |
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− | देह पर उस का स्पर्श | + | मेरे बहुत पास |
− | मधुर ही कहूँगा | + | मृत्यु का सुवास |
− | उस का स्वर कानों में | + | देह पर उस का स्पर्श |
− | भीतर मगर प्राणों में | + | मधुर ही कहूँगा |
− | जीवन की लय | + | उस का स्वर कानों में |
− | तरंगित और उद्दाम | + | भीतर मगर प्राणों में |
− | किनारों में काम के बँधा | + | जीवन की लय |
− | प्रवाह नाम का | + | तरंगित और उद्दाम |
+ | किनारों में काम के बँधा | ||
+ | प्रवाह नाम का | ||
− | एक दृश्य सुबह का | + | एक दृश्य सुबह का |
− | एक दृश्य शाम का | + | एक दृश्य शाम का |
− | दोनों में क्षितिज पर | + | दोनों में क्षितिज पर |
− | सूरज की लाली | + | सूरज की लाली |
− | दोनों में धरती पर | + | दोनों में धरती पर |
− | छाया घनी और लम्बी | + | छाया घनी और लम्बी |
− | इमारतों की वृक्षों की | + | इमारतों की वृक्षों की |
− | देहों की काली | + | देहों की काली |
− | दोनों में कतारें पंछियों की | + | दोनों में कतारें पंछियों की |
− | चुप और चहकती हुई | + | चुप और चहकती हुई |
− | दोनों में राशियाँ फूलों की | + | दोनों में राशियाँ फूलों की |
− | कम-ज्यादा महकती हुई | + | कम-ज्यादा महकती हुई |
− | दोनों में | + | दोनों में |
− | एक तरह की शान्ति | + | एक तरह की शान्ति |
− | एक तरह का आवेग | + | एक तरह का आवेग |
− | आँखें बन्द प्राण खुले हुए | + | आँखें बन्द प्राण खुले हुए |
− | अस्पष्ट मगर धुले हुऐ | + | अस्पष्ट मगर धुले हुऐ |
− | कितने आमन्त्रण | + | कितने आमन्त्रण |
− | बाहर के भीतर के | + | बाहर के भीतर के |
− | कितने अदम्य इरादे | + | कितने अदम्य इरादे |
− | कितने उलझे कितने सादे | + | कितने उलझे कितने सादे |
− | अच्छा अनुभव है | + | अच्छा अनुभव है |
− | मृत्यु मानो | + | मृत्यु मानो |
− | हाहाकार नहीं है | + | हाहाकार नहीं है |
− | कलरव है! | + | कलरव है! |
08:59, 9 मई 2013 के समय का अवतरण
मेरे बहुत पास
मृत्यु का सुवास
देह पर उस का स्पर्श
मधुर ही कहूँगा
उस का स्वर कानों में
भीतर मगर प्राणों में
जीवन की लय
तरंगित और उद्दाम
किनारों में काम के बँधा
प्रवाह नाम का
एक दृश्य सुबह का
एक दृश्य शाम का
दोनों में क्षितिज पर
सूरज की लाली
दोनों में धरती पर
छाया घनी और लम्बी
इमारतों की वृक्षों की
देहों की काली
दोनों में कतारें पंछियों की
चुप और चहकती हुई
दोनों में राशियाँ फूलों की
कम-ज्यादा महकती हुई
दोनों में
एक तरह की शान्ति
एक तरह का आवेग
आँखें बन्द प्राण खुले हुए
अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
कितने आमन्त्रण
बाहर के भीतर के
कितने अदम्य इरादे
कितने उलझे कितने सादे
अच्छा अनुभव है
मृत्यु मानो
हाहाकार नहीं है
कलरव है!