भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ध्वनि / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | |रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | ||
}} | }} | ||
− | अभी न होगा मेरा अन्त | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <poem> | ||
+ | अभी न होगा मेरा अन्त | ||
− | अभी-अभी ही तो आया है | + | अभी-अभी ही तो आया है |
− | मेरे वन में मृदुल वसन्त- | + | मेरे वन में मृदुल वसन्त- |
− | अभी न होगा मेरा अन्त | + | अभी न होगा मेरा अन्त |
− | हरे-हरे ये पात, | + | हरे-हरे ये पात, |
− | डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! | + | डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! |
− | मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर | + | मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर |
− | फेरूँगा निद्रित कलियों पर | + | फेरूँगा निद्रित कलियों पर |
− | जगा एक प्रत्यूष मनोहर | + | जगा एक प्रत्यूष मनोहर |
− | पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, | + | पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं, |
− | अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, | + | अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं, |
− | द्वार दिखा दूँगा फिर उनको | + | द्वार दिखा दूँगा फिर उनको |
− | है मेरे वे जहाँ अनन्त- | + | है मेरे वे जहाँ अनन्त- |
− | अभी न होगा मेरा अन्त। | + | अभी न होगा मेरा अन्त। |
− | मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, | + | मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण, |
− | इसमें कहाँ मृत्यु? | + | इसमें कहाँ मृत्यु? |
− | है जीवन ही जीवन | + | है जीवन ही जीवन |
− | अभी पड़ा है आगे सारा यौवन | + | अभी पड़ा है आगे सारा यौवन |
− | स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन, | + | स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन, |
− | मेरे ही अविकसित राग से | + | मेरे ही अविकसित राग से |
− | विकसित होगा बन्धु, दिगन्त; | + | विकसित होगा बन्धु, दिगन्त; |
− | अभी न होगा मेरा अन्त।< | + | अभी न होगा मेरा अन्त। |
+ | </poem> |
16:38, 2 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त
हरे-हरे ये पात,
डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर
फेरूँगा निद्रित कलियों पर
जगा एक प्रत्यूष मनोहर
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको
है मेरे वे जहाँ अनन्त-
अभी न होगा मेरा अन्त।
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,
इसमें कहाँ मृत्यु?
है जीवन ही जीवन
अभी पड़ा है आगे सारा यौवन
स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,
मेरे ही अविकसित राग से
विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;
अभी न होगा मेरा अन्त।