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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''बाबू जी<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[आलोक श्रीवास्तव]]
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घर की बुनियादें दीवारें बामों-दर थे बाबू जी
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सबको बाँधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
तीन मुहल्लों में उन जैसी कद काठी का कोई न था
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<div style="text-align: center;">
अच्छे ख़ासे ऊँचे पूरे क़द्दावर थे बाबू जी
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
अम्मा जी की सारी सजधज सब ज़ेवर थे बाबू जी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
भीतर से ख़ालिस जज़बाती और ऊपर से ठेठ पिता
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
अलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबू जी
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे कभी हथेली की सूजन
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सबमें अपनेपन की माया
मेरे मन का आधा साहस आधा डर थे बाबू जी
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अपने पन में जीवन आया
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया