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"गार्गी उवाच / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर
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छोड़ दो गउएँ | छोड़ दो गउएँ | ||
मूक प्राणी हैं..... | मूक प्राणी हैं..... | ||
कुछ न कहेंगी | कुछ न कहेंगी | ||
हकाल ले जाओ भले, | हकाल ले जाओ भले, | ||
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रोकती हूँ तुम्हारा मार्ग, | रोकती हूँ तुम्हारा मार्ग, | ||
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06:18, 10 जून 2013 के समय का अवतरण
गार्गी उवाच
ऋषि!
तुम भले ही हाँक ले जाओ सब गाय
और भले ही, तत्वदर्शी होने का
अहं तुम्हारा
रहे जीवित
किन्तु
‘आकाश’ में गूँजते
‘तरंगों’ में लहराते
‘विद्युत’-से कौंधते
मेरे प्रश्न तो सुनते जाओ
‘शास्त्रार्थ’ से तुम न दे सकोगे
इनके उत्तर
छूट जाएगा सारा दम्भ।
छोड़ दो गउएँ
मूक प्राणी हैं.....
कुछ न कहेंगी
हकाल ले जाओ भले,
किन्तु मैं
रोकती हूँ तुम्हारा मार्ग,
ठहरो.........!!
प्रश्न तो सुनो, याज्ञवल्क्य !