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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[गोरख पाण्डेय]]
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समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
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समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
हाथी से आई
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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घोड़ा से आई
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
नोटवा से आई
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सबमें अपनेपन की माया
 
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अपने पन में जीवन आया
बोटवा से आई
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बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...
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गाँधी से आई
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आँधी से आई
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टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...
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काँगरेस से आई
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जनता से आई
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झंडा से बदली हो आई, समाजवाद...
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डालर से आई
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रूबल से आई
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देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद...
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वादा से आई
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लबादा से आई
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जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद...
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लाठी से आई
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गोली से आई
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लेकिन अंहिसा कहाई, समाजवाद...
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महंगी ले आई
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गरीबी ले आई
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केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद...
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छोटका का छोटहन
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बड़का का बड़हन
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बखरा बराबर लगाई, समाजवाद...
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परसों ले आई
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बरसों ले आई
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हरदम अकासे तकाई, समाजवाद...
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धीरे-धीरे आई
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चुपे-चुपे आई
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अँखियन पर परदा लगाई
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समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई ।
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'''(रचनाकाल :1978)
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया