भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चरागे़जीस्त बुझा दिल से इक धुआँ निकला / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला। लगा के आग मे...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=यगाना चंगेज़ी
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
चराग़-ए-जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।
  
 +
लगा के आग मेरे घर से मेहरबाँ निकला॥
  
चरागे़जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।
 
  
लगा के आग मेरे घर से मेहमाँ निकला॥
+
तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खड़े हुए आख़िर।
 
+
 
+
तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खडे़ हुए आखिर।
+
  
 
तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥
 
तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥
पंक्ति 18: पंक्ति 21:
 
लगा है दिल को अब अंजामेकार का खटका।
 
लगा है दिल को अब अंजामेकार का खटका।
  
बहारे-गुल से भी इक पहलुए-ख़िज़ाँ निकला॥
+
बहार-ए-गुल से भी इक पहलु-ए-ख़िज़ाँ निकला॥
  
  
 +
ज़माना फिर गया चलने लगी हवा उलटी।
  
 +
चमन को आग लगाके जो बाग़बाँ निकला॥
  
  
{{KKMeaning}}
+
कलाम-ए-
 +
'यास' से दुनिया में फिर इक आग लगी।
  
 +
यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥
  
ज़माना फिर ग्या चलने लगी हवा उलटी।
 
  
चमन को आग लगा के जो बाग़बाँ निकला॥
 
  
  
कलामे ‘यास, से दुनिया में फिर इक आग लगी।
 
  
यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥
+
{{KKMeaning}}

18:41, 13 जुलाई 2009 के समय का अवतरण

चराग़-ए-जीस्त<ref>जीवन-दीप</ref> बुझा दिल से इक धुआँ निकला।

लगा के आग मेरे घर से मेहरबाँ निकला॥


तड़प के आबला-पा<ref>पाँव के छाले</ref> उठ खड़े हुए आख़िर।

तलाशे-यार में जब कोई कारवाँ निकला॥


लहू लगा के शहीदों में हो गए दाख़िल।

हविस तो निकली मगर हौसला कहाँ निकला॥


लगा है दिल को अब अंजामेकार का खटका।

बहार-ए-गुल से भी इक पहलु-ए-ख़िज़ाँ निकला॥


ज़माना फिर गया चलने लगी हवा उलटी।

चमन को आग लगाके जो बाग़बाँ निकला॥


कलाम-ए- 'यास' से दुनिया में फिर इक आग लगी।

यह कौन हज़रते ‘आतिश’ का हमज़बाँ निकला॥



शब्दार्थ
<references/>