भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंधा कुंआं / तारादत्त निर्विरोध" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार=तारादत्त निर्विरोध | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
[[Category:गीत]] | [[Category:गीत]] | ||
− | |||
− | |||
− | |||
चलो, अच्छा हुआ | चलो, अच्छा हुआ |
16:12, 23 मई 2009 के समय का अवतरण
चलो, अच्छा हुआ
हमने भी झांक लिया
लंगड़ों के गांव का
अंधा कुंआं।
अब तो हैं छूट रहे
पांवों से
पगडंडी-पाथ,
वह भी सब छोड़ चले
लाए जो साथ-साथ।
न कहीं टोकते गबरीले शकुन,
न कहीं रोकती मटियाली दुआ।
हमने ही चाहे नहीं
झाड़ी के बेर,
छज्जे की धूप के
नये हेर फेर।
अरसे से मौन था
भीतरी सुआ।