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"चाय / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति" के अवतरणों में अंतर

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मैंने कप को उठा कर ओंठों से लगा लिया
 
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16:01, 12 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

तुम चुप थीं और मैं भी चुप था
हमारे बीच चाय का कप था
धूप का सुनहरा रंग लिए
उसकी सुनहरी किनार पर
तुम्हारी आँखें चमक रही थीं

बहुत देर तक चाय
ज़िन्दगी की उपेक्षा में ठंडी होती रही
फिर तुमने उंगली से चाय पर जमी परत हटा दी
मैंने कप को उठा कर ओंठों से लगा लिया