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21:47, 21 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
उगी गोरे भला पर बेंदी!
एक छोटे दायरे में लालिमा इतनी बिथुरती,
बांध किसने दी।
नहा केसर के सरोवर में,
ज्यों गुलाबी चांद उग आया।
अनछुई-सी पाँखुरी रक्ताभ पाटल की,
रक्तिमा जिसकी, शिराओं के
सिहरते वेग में,
झनकार बनकर खो गई।
भुरहरे के लहकते रवि की
विभा ज्यों फूट निकली,
चीरती-सी कोर हलके पीत बादल की,
रात केशों में सिमटकर सो गई।
अरुन इंदीवर खिला, ईंगूर पराग भरा
सुनहले रूप के जल में
अलक्तक की बूंद
झिलमिल : स्फटिक के तल में।