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"शीन काफ़ निज़ाम / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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जोधपुर में 26 नवंबर 1947 को जन्मे शीन काफ़ निज़ाम की किताब संग्रह  
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जोधपुर में 26 नवंबर 1947 को जन्मे शीन काफ़ निज़ाम की किताब संग्रह “लम्हों की सलीब”, “दश्त में दरिया” और “साया कोई लंबा न था” देवनागरी में प्रकाशित है ।
“लम्हों की सलीब” , “दश्त में दरिया” और “साया कोई लंबा न था”  
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उर्दू के बहु चर्चित काव्य संकलन शीराज़ा, मेयार में शीन काफ़ निज़ाम सम्मलित है ।
देवनागरी में प्रकाशित है ।
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पाकिस्तान में जितने लोकप्रिय रहे, उतने वह भारत में भी ये प्रसिद्ध थे ।
उर्दू के बहु चर्चित काव्य संकलन शीराज़ा, मेयार में शीन काफ़ निज़ाम सम्मलित है ।
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पाकिस्तान में जितने लोकप्रिय रहे, उतने वह भारत में भी थे ।
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भारत पाक की उर्दू पत्रिकाओं में आलोचनात्मक निबंधों के अतिरिक्त हिन्दी से उर्दू तथा उर्दू से हिन्दी में आधुनिक कविता का अनुवाद भी किया है ।
 
भारत पाक की उर्दू पत्रिकाओं में आलोचनात्मक निबंधों के अतिरिक्त हिन्दी से उर्दू तथा उर्दू से हिन्दी में आधुनिक कविता का अनुवाद भी किया है ।
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इन्होंने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठियाँ में पत्र वाचन एवम् शिरकत की है  
 
इन्होंने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठियाँ में पत्र वाचन एवम् शिरकत की है  
  
 
ग़ज़ल इल्म को एहसास बनाने की कला है , इनकी ग़ज़लें न सिर्फ़ प्रेम के विरह और या राग रागिनी ही नहीं लिखती है बल्कि आज़ के दौर को  दर्शाती हुई भी है
 
ग़ज़ल इल्म को एहसास बनाने की कला है , इनकी ग़ज़लें न सिर्फ़ प्रेम के विरह और या राग रागिनी ही नहीं लिखती है बल्कि आज़ के दौर को  दर्शाती हुई भी है
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इनकी शायरी ज़िंदगी में घुली होती है और जीने का सलीका भी सिखाती है
 
इनकी शायरी ज़िंदगी में घुली होती है और जीने का सलीका भी सिखाती है
  
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तिरी आँखों को खुदा महफूज़ रखे  
 
तिरी आँखों को खुदा महफूज़ रखे  
 
तिरी आँखों में हैरानी बहुत है  
 
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इस शेर में ज़िंदगी की सारी सच्चाई लफ़्ज़ों में समेट दी
 
इस शेर में ज़िंदगी की सारी सच्चाई लफ़्ज़ों में समेट दी
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सभी की सब से अदावत है और मुहब्बत भी  
 
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इनके शेर जहाँ खास ओ आम लय पर थिरकते हैं ,वहीं इसके अंतर कोने तक पहुँच कर अर्थ पर मनन चिंतन करते हैं  
 
इनके शेर जहाँ खास ओ आम लय पर थिरकते हैं ,वहीं इसके अंतर कोने तक पहुँच कर अर्थ पर मनन चिंतन करते हैं  
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मैं ज़िंदगी को ढूंढता हूँ ज़िंदगी मुझे
 
मैं ज़िंदगी को ढूंढता हूँ ज़िंदगी मुझे
  
 
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2006 में को शीन काफ़ निज़ाम जी को इक़बाल सम्मान से नवाज़ा गया  
2006 में को शीन काफ़ निज़ाम इक़बाल सम्मान से नवाज़ा गया  
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इसके अलावा भाषा उर्दू एकेड्मी और बेगम अख़्तर अवॉर्ड भी मिला है
इसके अलावा शीन काफ़ निज़ाम जी को  भाषा उर्दू एकेड्मी और बेगम अख़्तर अवॉर्ड भी मिला है
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शीन काफ़ निज़ाम जी के पसंदीदा आशार
 
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वो तन्हा होता तो होगा  
 
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19:40, 2 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

जोधपुर में 26 नवंबर 1947 को जन्मे शीन काफ़ निज़ाम की किताब संग्रह “लम्हों की सलीब”, “दश्त में दरिया” और “साया कोई लंबा न था” देवनागरी में प्रकाशित है ।
उर्दू के बहु चर्चित काव्य संकलन शीराज़ा, मेयार में शीन काफ़ निज़ाम सम्मलित है ।
पाकिस्तान में जितने लोकप्रिय रहे, उतने वह भारत में भी ये प्रसिद्ध थे ।

भारत पाक की उर्दू पत्रिकाओं में आलोचनात्मक निबंधों के अतिरिक्त हिन्दी से उर्दू तथा उर्दू से हिन्दी में आधुनिक कविता का अनुवाद भी किया है ।

इन्होंने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठियाँ में पत्र वाचन एवम् शिरकत की है

ग़ज़ल इल्म को एहसास बनाने की कला है , इनकी ग़ज़लें न सिर्फ़ प्रेम के विरह और या राग रागिनी ही नहीं लिखती है बल्कि आज़ के दौर को दर्शाती हुई भी है

इनकी शायरी ज़िंदगी में घुली होती है और जीने का सलीका भी सिखाती है


अनोखे अंदाज़ में कही इनकी ये पंक्तियाँ याद आती है

तिरी आँखों को खुदा महफूज़ रखे
तिरी आँखों में हैरानी बहुत है


इस शेर में ज़िंदगी की सारी सच्चाई लफ़्ज़ों में समेट दी
 
सभी की सब से अदावत है और मुहब्बत भी
सभी से हाथ मिलाओ किसी से कुछ न कहो


इनके शेर जहाँ खास ओ आम लय पर थिरकते हैं ,वहीं इसके अंतर कोने तक पहुँच कर अर्थ पर मनन चिंतन करते हैं

सोना क्या मिट्टी है लेकिन
मिट्टी में सोना मिलता है


उनके तीखी कलम को बताती ये पंक्तियाँ ज़हन में गुँज़ती है

हमारे पास क्या, शोहरत न दौलत
उन्हें हम किसलिए अच्छे लगेंगे

कहीं वो बहुत छुपे हुए लहज़े में बात करते हैं वहीं उनकी बेबाकी कभी कभी हदों को तज़ावुज़् करती है

जब से गई है छोड़ कर आवारगी मुझे
मैं ज़िंदगी को ढूंढता हूँ ज़िंदगी मुझे

2006 में को शीन काफ़ निज़ाम जी को इक़बाल सम्मान से नवाज़ा गया
इसके अलावा भाषा उर्दू एकेड्मी और बेगम अख़्तर अवॉर्ड भी मिला है

शीन काफ़ निज़ाम जी के पसंदीदा आशार

  • रात सो जाए, दिन निकल जाए

उस इमारत को अपना घर लिखना

  • ये नया डर हुआ सफ़र में मुझे

रास्ता ख्तम हो न जाए कहीं

  • तेरा पता बताता है

एक हवा का झोंका है

  • ख़ुदकुशी के सैकड़ों अंदाज़ है

आरज़ू का ही न दामन थाम लूँ

  • मारा जाएगा देखना इक दिन

क्यूँ दिल ए दर्द मंद रखता है

  • खुद से भी तो उलझा होगा

वो तन्हा होता तो होगा