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जोधपुर में 26 नवंबर 1947 को जन्मे शीन काफ़ निज़ाम की किताब संग्रह “लम्हों की सलीब” , “दश्त में दरिया” और “साया कोई लंबा न था” देवनागरी में प्रकाशित है । उर्दू के बहु चर्चित काव्य संकलन शीराज़ा, मेयार में शीन काफ़ निज़ाम सम्मलित है । पाकिस्तान में जितने लोकप्रिय रहे, उतने वह भारत में भी ये प्रसिद्ध थे ।
भारत पाक की उर्दू पत्रिकाओं में आलोचनात्मक निबंधों के अतिरिक्त हिन्दी से उर्दू तथा उर्दू से हिन्दी में आधुनिक कविता का अनुवाद भी किया है ।
इन्होंने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठियाँ में पत्र वाचन एवम् शिरकत की है
ग़ज़ल इल्म को एहसास बनाने की कला है , इनकी ग़ज़लें न सिर्फ़ प्रेम के विरह और या राग रागिनी ही नहीं लिखती है बल्कि आज़ के दौर को दर्शाती हुई भी है
इनकी शायरी ज़िंदगी में घुली होती है और जीने का सलीका भी सिखाती है
तिरी आँखों को खुदा महफूज़ रखे
तिरी आँखों में हैरानी बहुत है
इस शेर में ज़िंदगी की सारी सच्चाई लफ़्ज़ों में समेट दी
सभी की सब से अदावत है और मुहब्बत भी
सभी से हाथ मिलाओ किसी से कुछ न कहो
इनके शेर जहाँ खास ओ आम लय पर थिरकते हैं ,वहीं इसके अंतर कोने तक पहुँच कर अर्थ पर मनन चिंतन करते हैं
मैं ज़िंदगी को ढूंढता हूँ ज़िंदगी मुझे
2006 में को शीन काफ़ निज़ाम जी को इक़बाल सम्मान से नवाज़ा गया इसके अलावा शीन काफ़ निज़ाम जी को भाषा उर्दू एकेड्मी और बेगम अख़्तर अवॉर्ड भी मिला है
शीन काफ़ निज़ाम जी के पसंदीदा आशार
* खुद से भी तो उलझा होगा
वो तन्हा होता तो होगा
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