भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ऐसा दीप बनूँगा / तारादत्त निर्विरोध" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[डा तारादत्त निर्विरोध]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=तारादत्त निर्विरोध
 +
|संग्रह=
 +
}}
 
[[Category:गीत]]
 
[[Category:गीत]]
[[Category:डा तारादत्त निर्विरोध]]
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
  
  

16:13, 23 मई 2009 के समय का अवतरण


जो सबको उजियारा बाँटे,

ऐसा दीप बनूँगा


अँधियारे का चोर न छिपकर

उजियारे की गाँठ चुरा ले

और न सबकी आँख चुराकर

दुश्मन भी अधिकार जमा ले

इसीलिए मैं सब राहों में

दीपक वाली राह चुनूँगा।


दीवारों को तोड़ रोशनी

फैलाऊँगा हर द्वारे तक

मंदिर से लेकर मिस्जद तक

गिरिजाघर से गुरुद्वारे तक

सच्ची मानवता की खातिर

नैतिकता की बात गुनूँगा


जिनके दुख को हवा चाहिए

उन्हें खिला सा नीरज दूँगा

किरणें जिनके द्वार न आई

उनको सुख का सूरज दूँगा

जो अभाव में रहे आज तक

पहले उनकी पीर सुनूँगा।

                डा तारादत्त निर्विरोध