Last modified on 14 फ़रवरी 2016, at 18:35

"सीखो आँखें पढ़ना साहिब / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
 
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
 +
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
सीखो आँखें पढ़ना साहिब
 
सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मश्किल वरना साहिब
+
होगी मुश्किल वरना साहिब
  
सम्भल कर तुम दोष लगाना
+
सम्भल कर इल्जाम लगाना
 
उसने खद्‍दर पहना साहिब
 
उसने खद्‍दर पहना साहिब
  
पंक्ति 21: पंक्ति 22:
  
 
सब को दूर सुहाना लागे
 
सब को दूर सुहाना लागे
क्यूँ ढोलों का बजना साहिब
+
क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब
  
कितनी कयनातें ठहरा दे
+
कायनात सारी ठहरा दे
उस आँचल का ढलना साहिब
+
उस आँचल का ढ़लना साहिब
</poem>
+
 
 +
 
 +
 
 +
(द्विमासिक आधारशिला, जनवरी-फरवरी 2009)

18:35, 14 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्किल वरना साहिब

सम्भल कर इल्जाम लगाना
उसने खद्‍दर पहना साहिब

तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब

दीवारें किलकारी मारे
घर में झूले पलना साहिब

पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब

सब को दूर सुहाना लागे
क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब

कायनात सारी ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना साहिब



(द्विमासिक आधारशिला, जनवरी-फरवरी 2009)