भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दोहे-3 / राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द }} {{KKCatKavita}} <poem> घर बसा ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("दोहे-3 / राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:48, 28 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
घर बसा दिन-रात उन का तब मदन वान उस घड़ी,
कह गई दुल्ह-दुल्हिन को ऐसी सौ बातें कड़ी।
बास पाकर केवड़े की केतकी का जी खुला।
सच है, इन दोनों जनों को अब किसकी क्या पड़ी?
क्या न आई लाज कुछ अपने पराए की? अजी!
थी अभी इस बात की ऐसी अभी क्या हड़बड़ी?