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"कितना भला होता रेगिस्तान / अमित कल्ला" के अवतरणों में अंतर
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00:04, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
थाम लेती हैं उंगलियाँ
पानी की
रंगों से भरी
गाथाएं
रामभरोसे ही सही
कोरती उड़ते पंख
आसमान के,
बातचीत की बिसातों पर
अक्षरों की बुनाई से
छूटे अजनबी रेशे
मनमानी
सुधि जगाते हैं
आख़िर
कितना भला होता
रेगिस्तान
अपने बिछोने पर
यात्राओं के
रूखे पगों को
नम करता
गहरे - गहरे
साजों की संगत का
अर्ध्य देता है ।