"मिलन / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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रजतकरों की मृदुल तूलिका | रजतकरों की मृदुल तूलिका | ||
− | से ले | + | से ले तुहिन-बिन्दु सुकुमार, |
कलियों पर जब आँक रहा था | कलियों पर जब आँक रहा था | ||
− | करूण कथा अपनी संसार | + | करूण कथा अपनी संसार; |
− | तरल हृदय की | + | तरल हृदय की उच्छ्वास |
− | भोले मेघ लुटा जाते | + | जब भोले मेघ लुटा जाते, |
अन्धकार दिन की चोटों पर | अन्धकार दिन की चोटों पर | ||
− | अंजन बरसाने आते | + | अंजन बरसाने आते! |
मधु की बूदों में छ्लके जब | मधु की बूदों में छ्लके जब | ||
− | तारक लोकों के | + | तारक लोकों के शुचि फूल, |
विधुर हृदय की मृदु कम्पन सा | विधुर हृदय की मृदु कम्पन सा | ||
− | सिहर उठा वह नीरव | + | सिहर उठा वह नीरव कूल; |
− | मूक प्रणय से मधुर व्यथा से | + | मूक प्रणय से, मधुर व्यथा से |
− | स्वप्न लोक के से आह्वान | + | स्वप्न लोक के से आह्वान, |
वे आये चुपचाप सुनाने | वे आये चुपचाप सुनाने | ||
− | तब मधुमय मुरली की | + | तब मधुमय मुरली की तान। |
चल चितवन के दूत सुना | चल चितवन के दूत सुना | ||
− | उनके, पल में रहस्य की बात | + | उनके, पल में रहस्य की बात, |
मेरे निर्निमेष पलकों में | मेरे निर्निमेष पलकों में | ||
− | मचा गये क्या क्या उत्पात | + | मचा गये क्या क्या उत्पात! |
जीवन है उन्माद तभी से | जीवन है उन्माद तभी से | ||
− | निधियां प्राणों के छाले | + | निधियां प्राणों के छाले, |
मांग रहा है विपुल वेदना | मांग रहा है विपुल वेदना | ||
− | के मन प्याले पर प्याले | + | के मन प्याले पर प्याले! |
पीड़ा का साम्राज्य बस गया | पीड़ा का साम्राज्य बस गया | ||
− | उस दिन दूर क्षितिज के | + | उस दिन दूर क्षितिज के पार, |
− | मिटना था निर्वाण | + | मिटना था निर्वाण जहाँ |
− | नीरव रोदन था पहरेदार | + | नीरव रोदन था पहरेदार! |
कैसे कहती हो सपना है | कैसे कहती हो सपना है | ||
− | अलि उस मूक मिलन की बात | + | अलि! उस मूक मिलन की बात? |
− | भरे हुए अब तक फूलों | + | भरे हुए अब तक फूलों में |
− | मेरे आँसू उनके हास | + | मेरे आँसू उनके हास! |
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22:23, 12 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
रजतकरों की मृदुल तूलिका
से ले तुहिन-बिन्दु सुकुमार,
कलियों पर जब आँक रहा था
करूण कथा अपनी संसार;
तरल हृदय की उच्छ्वास
जब भोले मेघ लुटा जाते,
अन्धकार दिन की चोटों पर
अंजन बरसाने आते!
मधु की बूदों में छ्लके जब
तारक लोकों के शुचि फूल,
विधुर हृदय की मृदु कम्पन सा
सिहर उठा वह नीरव कूल;
मूक प्रणय से, मधुर व्यथा से
स्वप्न लोक के से आह्वान,
वे आये चुपचाप सुनाने
तब मधुमय मुरली की तान।
चल चितवन के दूत सुना
उनके, पल में रहस्य की बात,
मेरे निर्निमेष पलकों में
मचा गये क्या क्या उत्पात!
जीवन है उन्माद तभी से
निधियां प्राणों के छाले,
मांग रहा है विपुल वेदना
के मन प्याले पर प्याले!
पीड़ा का साम्राज्य बस गया
उस दिन दूर क्षितिज के पार,
मिटना था निर्वाण जहाँ
नीरव रोदन था पहरेदार!
कैसे कहती हो सपना है
अलि! उस मूक मिलन की बात?
भरे हुए अब तक फूलों में
मेरे आँसू उनके हास!