"मेरा राज्य / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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रजनी ओढे जाती थी | रजनी ओढे जाती थी |
22:25, 12 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
रजनी ओढे जाती थी
झिलमिल तारों की जाली,
उसके बिखरे वैभव पर
जब रोती थी उजियाली;
शशि को छूने मचली थी
लहरों का कर कर चुम्बन,
बेसुध तम की छाया का
तटनी करती आलिंगन।
अपनी जब करुण कहानी
कह जाता है मलयानिल,
आँसू से भर जाता जब
सृखा अवनी का अंचल;
पल्लव के ड़ाल हिंड़ोले
सौरभ सोता कलियों में,
छिप छिप किरणें आती जब
मधु से सींची गलियों में।
आँखों में रात बिता जब
विधु ने पीला मुख फेरा,
आया फिर चित्र बनाने
प्राची ने प्रात चितेरा;
कन कन में जब छाई थी
वह नवयौवन की लाली,
मैं निर्धन तब आयी ले,
सपनों से भर कर डाली।
जिन चरणों की नख आभा
ने हीरकजाल लजाये,
उन पर मैंने धुँधले से
आँसू दो चार चढाये!
इन ललचाई पलकों पर
पहरा जब था व्रीणा का,
साम्राज्य मुझे दे ड़ाला
उस चितवन ने पीड़ा का!!
उस सोने के सपने को
देखे कितने युग बीते!
आँखों के कोश हुये हैं
मोती बरसा कर रीते;
अपने इस सूने पन की
मैं हूँ रानी मतवाली,
प्राणों का दीप जलाकर
करती रहती दीवाली।
मेरी आहें सोती हैं
इन ओठों की ओटों में,
मेरा सर्वस्व छिपा है
इन दीवानी चोटों में!!
चिन्ता क्या है हे निर्मम!
बुझ जाये दीपक मेरा;
हो जायेगा तेरा ही
पीड़ा का राज्य अँधेरा!